Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आज रात फिर आंखों में काटी मैंने

 

आज रात फिर आंखों में काटी मैंने


आज रात फिर आँखों में काटी मैंने, 
आज सितारों से फिर मेरी बात हुई। 
                  (1)
पता पूछता रहा हवाओं से तेरा,
रहा चाँद में तेरी छवि को बैठाता। 
सूनेपन में तुझे खोजता फिरा किया, 
तुझे बुलाने वाले गीत रहा गाता। 

 लेकिन यह सारे करतब बेकार हुए, 
 तुम्हें नहीं सुनना था, तुमने नहीं सुना;

 सारे जतन किए पर हासिल कुछ न हुआ, 
 रीते हाथों फिर वापस बारात हुई। 

आज रात फिर आँखों में काटी मैंने,
आज सितारों से फिर मेरी बात हुई। 
                    (2)
कहीं पास जब पपिहे ने 'पी कहाँ' कहा, 
सोचा तू भी याद मुझे करती होगी। 
कहीं दूर जब क्रंदन किया मयूरी ने, 
लगा कि तू भी आह कहीं भरती होगी। 

दुनिया का ही भय होगा मजबूर किए, 
शायद मेरी भाँति, प्रेम को, तेरे भी ;

तेरी मजबूरी का ध्यान किया जब जब,
तब तब मुझ से आँसू की बरसात हुई। 

आज रात फिर आँखों में काटी मैंने, 
आज सितारों से फिर मेरी बात हुई। 
                       (3)         
 इस जीवन में मिल न सके तो क्या चिंता, 
 जनम जनम तक तेरी राह निहारूँगा। 
 मुझे मोक्ष से लाख गुना प्रिय वह जीवन, 
 होगा, जिसमें मैं तेरा हो पाऊँगा। 

बार बार जन्मूँ तुझको पाने के हित, 
तुझ से प्रेम करूँ, फिर तेरा विरह जिऊँ;

 मुझे स्वर्ग की अभिलाषा का क्या करना,
सबसे बड़ी यही मेरी सौगात हुई। 

 आज रात फिर आँखों में काटी मैंने ,
आज सितारों से फिर मेरी बात हुई। 
                    (4)
 कहता कौन चाँदनी में शीतलता है ,
मुझको तो यह अंगारे जैसी लगती। 
 एकाकीपन में है शांति, कहा किसने? 
इससे मुझ में तो अशांति ही है जगती। 

किंतु भीड़ में भी रह कर मैंने देखा, 
 मेरे तड़पे मन को चैन कहीं न मिला;

तो मैं मात्र चाँदनी को ही क्यों कोसूँ, 
जहाँ रहा यह घटना मेरे साथ हुई। 

आज रात फिर आँखों में काटी मैंने, 
 आज सितारों से फिर मेरी बात हुई। 
             - - - - - - - - - 

-गौरव शुक्ल
मन्योरा 



Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ