अब इस दुनिया में मेरा कोई नहीं रहा।
जो थे उनसे अब मिलने की आशा न रही,
अब जीवन में कोई भी अभिलाषा न रही।
जो अपने थे वह एक-एक कर छोड़ गए,
रिश्ते नाते हैं सब के सब दम तोड़ गए।
मैं घुट घुट कर भीतर ही भीतर किया दहा।
अब इस दुनिया में मेरा कोई नहीं रहा।
आती-जाती हर सांस अकारण लगती है,
आत्मा जाने क्यों नहीं देह को तजती है?
क्या शेष देखना अभी रह गया है जग में?
है कौन शूल जिसका चुभना बाकी मग में?
है कौन दर्द बाकी जिसको अब तक न सहा?
अब इस दुनिया में मेरा कोई नहीं रहा।
है कौतुक कौन विशेष न जिसको देख सका?
है कौन विघ्न मुझ तक आने में नहीं थका?
काठिन्य प्रतीक्षारत है कौन महीतल में?
है कौन मोह बांधे अब भी जगतीतल में?
है अश्रु कौन जो दृग से अब तक नहीं बहा?
अब इस दुनिया में मेरा कोई नहीं रहा।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
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