अब क्या कहने को शेष रहा?
(1)
गीतों के पाँव लगे दुखने ,पर तुम तक नहीं पहुँच पाए;
थम गई लेखनी की लीला, शब्दों के चेहरे मुरझाए।
मेरा हर गाना व्यर्थ हुआ, छू सका तुम्हारा मन न अगर ;
मेरी हर कला विनष्ट हुई, डाला जिसने तुम पर असर।
ऐसी कविता को आग लगे,
ऐसा कौशल भाड़ में जाय ;
जब हर प्रयत्न असमर्थ भेजने में तुम तक संदेश रहा।
अब क्या कहने को शेष रहा?
(2)
क्या मतलब वाह वाह दुनिया, मेरे गीतों पर कहा करे ;
अपने भावों की झलक देख, रस की धारा में बहा करे।
अपनी वेदना लोग देखें, मेरे वेदना. भरे स्वर में ;
क्या मतलब जगे सहानुभूति, मेरे प्रति जग के अंतर में।
पत्थर पसीज जाएँ तो क्या,
मन में न तुम्हारे हुक उठे ;
तो यही कहूँगा काव्य - जगत में मेरा व्यर्थ प्रवेश रहा।
अब क्या कहने को शेष रहा?
(3)
हाथों में हाथ थाम मंदिर, में घंटी साथ बजाई जो ;
वह चादर हरी जिंदबाबा, को हमने साथ उढ़ाई जो।
लौटते समय हम भीगे थे, बारिश में जो मूसलाधार ;
हँसते गाते थी राह कटी, वह यादें कैसे दूँ बिसार।
वह चिदानंद अनुभव मेरे,
जेहन में अब भी ताजा हैं ;
तुम भूलीं तुम्हें मुबारक हो, मेरा मिटने से क्लेश रहा।
अब क्या कहने को शेष रहा?
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गौरव शुक्ल
मन्योरा
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