| Nov 16, 2020, 7:18 AM (1 day ago) |
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बहन के संबंध पर एक रचना
पाटे के ऊपर बैठाकर, सिर पर पगिया रखकर;
लेकर रोली अक्षत, तिलक लगाती है माथे पर।
कर में धागा बाँध, स्नेह की गंगा में नहलाती;
टुकड़ा छाँट बड़ा वाला बरफी का हमें खिलाती।
जिसके होने से रक्षाबंधन, रक्षाबंधन है,
बड़े भाग्य से धरती पर वह मिलती हमें बहन है।
अवसादों के गहन क्षणों में हमें सँभाला करती,
'क्यों उदास हो भैया'कहकर कारण जाना करती।
हमें दुखी पाकर मुँह जिसका स्वतः लटक जाता है,
उसपर लिखने में रोमांच सहज ही हो आता है।
अश्रु पोंछने को जिसका कर उठता सर्वप्रथम है,
उसका ऋण उतार पाने में कौन यहाँ सक्षम है।
पापा अगर डाँट दें, तो हमको समझाने आती,
खाने की थाली चुपके से बिस्तर पर दे जाती।
तीक्ष्ण दृष्टि से सारे गोपन भेद जान लेती है,
प्रणय-कथा भैया की अम्मा तक पहुँचा देती है।
मरहम घावों पर प्रत्येक लगाने वाली भगिनी!
गुड़िया,तिजिया,भैयादूज मनाने वाली भगिनी!
जिसे विदा करते पल सारे रोम काँप जाते हैं,
डोली में बिठलाते, सारा धीरज बिसराते हैं।
दुख के, सुख के, मिले जुले भावों का अनुभव करके;
भेज अंततः देते हैं, छाती पर पत्थर धर के।
अच्छे-बुरे दिनों में हर सहयोग हेतु आतुर है,
सत्य, स्वसा का,सहोदरा का नाता बहुत मधुर है।
इनकी विरुदावली अखंड, अपरिमित है, ललाम है;
सारी बहनों को मेरा विनम्रता से प्रणाम है।"
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- गौरव शुक्ल
मन्योरा
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