Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बैठ कहीं निर्जन में

 
 बैठ कहीं निर्जन में 

मुझे आज मेरी यादों में डूब नहाने दो। 
बैठ कहीं निर्जन में खुलकर अश्रु बहाने दो।। 

हँसी खुशी के साथ जिए हर जन अपना जीवन,
प्रेम मिले सबको,आहत हो नहीं किसी का मन। 
रिश्ते टूटे हुए, पूर्ववत सबके जुड़ जाएँ, 
मिटे विषाद, हर्ष सब के सब अपरिमेय पाएँ। 

पर मुझ को निज पीड़ा पर जी भर इतराने दो, 
बैठ कहीं निर्जन में खुलकर अश्रु बहाने दो।। 

सजती रहे महफिले गांव- गांव हर नगर- नगर, 
नई-नई रौनक से पटी पड़ी हो डगर- डगर। 
बिना रुकावट सबको अपने मन का मीत मिले, 
मुँह न हार का देखे कोई, सबको जीत मिले। 

किंतु पराजय पर अपनी मुझको मुस्काने दो। 
बैठ कहीं निर्जन में खुलकर अश्रु बहाने दो।। 

चूमे सबके कदम सफलता, शुभकामना यही;
सब की चाह पूर्ण हो, ईश्वर से प्रार्थना यही। 
किसी शोक में डूबा कोई आए नहीं नजर, 
ऐसा सरस बने धरती का वातावरण, मगर-

 मुझको अपनी करुणा में आनंद मनाने दो। 
बैठ कहीं निर्जन में खुलकर अश्रु बहाने दो।।

ऐसा निर्जन, जिसमें मुझ तक कोई आ न सके;
मेरी सिसकी का स्वर जिसके बाहर जा न सके। 
जहाँ निराशा ही मेरी, मुझको दुलराती हो, 
मेरी आह मुझी से संवेदना जताती हो। 

बोझ गमों का सीने पर सोत्साह उठाने दो।
बैठ कहीं निर्जन में खुलकर अश्रु बहाने दो।।

-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी

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