बेटी
वीरान चमन,आबाद किया करती है।
है जिम्मेदारी का अहसास जगाती,
दुनियादारी का हमको सबक सिखाती।
नीरसता में रस घोल दिया करती है,
हमको खुशियों से तोल दिया करती है।
बगिया में पुण्य प्रसून सदृश खिलती है,
निर्जन मरुथल में नदिया सी मिलती है।
भगवद्गीता जैसी पावनता धारे,
निर्दोष बाइबिल सा चारित्र्य सँवारे।
लगती कुरान की आयत सी उज्ज्वल है,
जो गुरू ग्रन्थ साहिब की भाँति धवल है।
गंगा की बूँद-बूँद जैसी सुपुनीता,
सारल्य मूर्ति सा किंतु तेज में सीता।
बेटी, जग को वरदान देवता का है,
इसका आदर, सम्मान देवता का है।
इसको सम्पूर्ण देश की पूँजी जानो,
इसको सारे समाज का गौरव मानो।
यह निखरे, बढ़े, फले, फूले, मुस्काये,
निर्द्वन्द्व, निडर घूमे , आनंद लुटाये ।
सब मिल , इसकी रक्षा का धर्म निभाओ,
हर एक दशा में यह दायित्व उठाओ।"
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
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