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Dr. Srimati Tara Singh
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भाई के संबंध पर एक रचना

 

भाई के संबंध पर एक रचना

"इस धरती पर जिसे दाहिनी भुजा कहा जाता है,

जो कि अनुज बन कभी, कभी अग्रज बनकर आता है।

एक कुक्षि, जिसमें अपने नौ माह बिताते हैं हम,

पूर्व जन्म के, एक लहू से सींचे जाते हैं   हम।

एक भाँति के स्तन से पीकर दूध सबल तन पाते,

एक पिता, माता की छाया में  दुलराये  जाते।

लाड़ एक सा, प्यार एक सा और एक सा बचपन,

एक अंक में, एक गोद में खेल, निखरता जीवन।

चोट हमें लगने पर जिसका रक्त उबल उठता है,

चट्टानों से भी टकराने हेतु मचल     उठता   है।

बनकर ढाल खड़ा हो जाता, देख शत्रु को सम्मुख;

जिसका हाथ देख कंधे पर मिलता है असीम सुख।

जान लुटाने को प्रस्तुत, उद्धत सर्वस्व  दान को;

शब्द-राशि हल्की लगती जिसके सम्मान-गान को।

जिसकी छाती चौड़ी होती, उन्नति देख हमारी,

असफलता पर किन्तु निराशा होती जिसको भारी।

बड़ा अगर है तो गलती पर टीप मार देता है,

छोटा अगर हुआ तो हँसकर थप्पड़ खा लेता है।

कभी पिता है, कभी मित्र है  और कभी माता है;

भाई, भ्राता, बंधु, सहोदर का अमूल्य   नाता है।

यह संबंध अपार मधुर है, अद्भुत है, पावन है;

इसकी ऊँचाई को मेरा सौ-सौ बार नमन है।

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                                     - गौरव शुक्ल

                                          मन्योरा

                                    लखीमपुर खीरी

                     मोबाइल-7398925402




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