Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भावुकता का फल भोग रहा हूँ

 
मैं अपनी भावुकता का फल भोग रहा हूँ।
(1)
रात रात भर मित्रों की सूचियाँ बनाना ,
उनके अच्छे बुरे कर्म घंटों दुहराना।
किसने-किसने कब-कब दिया कहाँ पर धोखा? 
रोज बनाना इसका पूरा लेखा-जोखा। 
नए सिरे से घृणा स्नेह की व्याख्या करके, 
उन पर हँसना अथवा रोना जी भर भर के। 

हरे राम! मैं कर यह कौन प्रयोग रहा हूँ। 
मैं अपनी भावुकता का फल भोग रहा हूँ।। 
(2)
हीन भावना बैठी मन में पैर पसारे ,
करने को ज्यों कुछ भी रहा न शेष हमारे। 
नकारात्मक चिंतन का हो दास गया हूँ, 
जीवन से हो बेहद आज निराश गया हूँ। 
कर्म-कर्म में समा गई ज्यों लाचारी है, 
हर इच्छा संन्यस्त हो गई बेचारी है। 

स्वयं लगाता खुद को मैं यह रोग रहा हूँ। 
मैं अपनी भावुकता का फल भोग रहा हूँ।। 
(3)
बात जरा सी मेरे मन यों लग जाती है, 
कई - कई रातों तक नींद नहीं आती है। 
लगता है जैसे अब पागल हो जाऊँगा, 
इतना दर्द अथाह सँभाल नहीं पाऊँगा। 
कब भूला जो मेरा सब कुछ छीन ले गये, 
जीवन भर पछताने का आधार दे गए। 

ढोता सीने     पर ऐसे    भी लोग रहा हूँ। 
मैं अपनी भावुकता का फल भोग रहा हूँ।।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा

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