दलित कौन है?
क्या बदलेगा देश दलित की परिभाषा को?
या फिर यह नौटंकी यूँ ही चला करेगी?
यह विधवा विलाप अनवरत चलेगा यूँ ही?
राजनीति वास्तविक दलित को छला करेगी?
क्या नेता, अधिकारी, पत्रकार या लेखक,
डाल सकेंगे बल, अपने अपने दिमाग पर?
यह अभीष्ट साहस क्या कोई जुटा सकेगा?
पढ़ा लिखा तबका समाज का, देगा उत्तर?
शायद नहीं, नहीं शायद कोई सोचेगा,
यह भेड़ियाधसान चलेगा शायद यूँ ही।
शायद चीखेगी स्वदेश की आत्मा यूँ ही,
और गरीब, गरीब रहेगा शायद यूँ ही।
दलित कौन है?' रामनाथ कोविंद' दलित हैं?
या 'मीरा कुमार' हैं दलित कहाने लायक?
या फिर 'मायावती' दलित लगती हैं तुमको?
या हैं 'रामबिलास' दलित बतलाने लायक?
यह सरकारी अफसर तुम्हें दलित लगते हैं?
हेलीकॉप्टर में उड़ते यह लोग दलित हैं?
दलित कौन? यह मंत्री, सांसद और विधायक?
' एसी 'कारों में चलते यह लोग दलित हैं?
दया कभी आती है, कभी हँसी आती है,
रोना आता कभी आप की परिभाषा पर।
केवल शब्दों के ही साथ मजाक नहीं यह,
आत्मा के भी साथ मजाक कर रहे खुलकर।
यही दलित हैं, तो फिर वह मजदूर कौन है?
बोरा लादे हुए पीठ पर, 'क्विंटल' भर का?
बैलों से हल जोत रहा किसान वह क्या है?
कर्ज रोज बढ़ता जाता जिसके ऊपर का?
हाथों में किताब की जगह कटोरा थामे,
भीख माँगने को मजबूर घूमता बचपन।
फुटपाथों पर रात बिताते लोग कौन हैं?
जिनको नहीं नसीब हुआ अब तक घर आँगन।
यह रिक्शे वाले, यह ठेले वाले सारे,
दलित नहीं हैं तो यह भी बतला दो क्या हैं?
जिनको दो रोटियाँ मयस्सर नहीं चैन की,
दलित नहीं है तो यह भी जतला दो क्या हैं?
होटल में कप प्लेट धो रहा नन्हा राजू,
इसे दलित कहना, कह दो सब, उचित नहीं है।
धनिया, मूली और पुदीना रख जमीन पर,
सब्जी बेच रही यह सलमा दलित नहीं है?
अगर नहीं तो आँख फोड़ लो अपनी अपनी,
दरिद्रता का और अधिक उपहास मत करो।
गला दबा दो अपने इस कुत्सित विवेक का,
निर्धनता का और अधिक उपहास मत करो।
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
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