'हमारी लेखनी से आज कागज पर उतर आओ'
हमारी लेखनी से आज कागज पर उतर आओ।
(1)
बहुत दिन से तुम्हारे दर्शनों की प्यास है मन में,
निछावर प्राण करने की भरी अभिलाष है मन में।
महकती माल सुमनों की चढ़ाना चाहता तुम पर;
तुम्हारी बहुप्रतीक्षित अर्चना की आस है मन में ।
हमारे स्वप्न पूरे हों, हमारी आस पूरी हो;
हमारे शब्द लेकर आज अपना चित्र बन जाओ।
हमारी लेखनी से आज कागज पर उतर आओ।
(2)
बसी मस्तिष्क में जो छवि सुघड़, आकार ले पाए;
तुम्हारा रूप, मेरा छंद, मिलकर एक हो जाए।
हमारे अक्षरों से गुंजरित हो स्वर तुम्हारा ही;
हमारा काव्य-कौशल कुल, तुम्हें साक्षात प्रकटाए।
परीक्षा आज हो जाए हमारी सत्य निष्ठा की ,
हमारे गीत में अपना सकल सौंदर्य बिखराओ।
हमारी लेखनी से आज कागज पर उतर आओ।
(3)
जगत कर ले समूचा आज अपनी प्रीति का दर्शन,
चली आओ निडर, संसार का हर तोड़कर बंधन।
हृदय की गूढ़तम गहराइयों के साथ यह अनुनय;
हमारी भावना समझो, करो स्वीकार आमंत्रण।
तुम्हारे ही दिए अधिकार से इतनी अपेक्षा है ,
प्रतीक्षा मत हमारी वेदना से और करवाओ।
हमारी लेखनी से आज कागज पर उतर आओ।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा
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