हाँ, मेरे सीने में पत्थर का जिगर है
हाँ, मेरे सीने में पत्थर का जिगर है,
यह किसी की बेवफाई का असर है।
दुश्मनों से तो निपट लेता हूँ हँसकर,
कुछ करीबी दोस्तों से डर मगर है।
चप्पलें घिसते उमर बीती जमीं पर,
आसमानों से मगर आगे नजर है।
जान देने का जो दावा कर रहे थे,
एक अर्से से न ली उनने खबर है।
है वहीं तस्वीर तेरी थी जहाँ पर,
देख ले आकर के शक कोई अगर है।
मेरी पेशानी पे सिलवट हैं न यूँ ही,
जिंदगी मेरी तजुर्बों का सफर है।
काम मेरे सब अधूरे ही पड़े हैं,
दिन ब दिन पर जा रही ढलती उमर है।
आइये, मेरे बगल में बैठिये तो,
मैं दिखाता हूँ जो तस्वीरे-शहर है।
देख लो तुम भी तमाशा साथ मेरे,
फूँक आया हूँ जिसे, वो मेरा घर है।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा
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