Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब तुम कभी अकेली होगी

 
जब तुम कभी अकेली होगी

जब तुम कभी अकेली होगी,
सन्नाटे में तब मेरी आवाज सुनाई देगी तुमको।
(1)
तुम्हें लगेगा आस-पास ही हूँ मैं अब भी कहीं तुम्हारे,
तुम्हें लगेगा अब भी तुम्हें बुलाता हूँ मैं साँझ-सकारे। 
तुम्हें लगेगा तुमको पाया है मैंने, तुमको खोकर भी;
तुम्हें लगेगा मुझको पाया है तुमने मुझको खोकर भी। 

सब खोकर भी सब पा लेना, यही प्रेम की सुंदरता है;
जब तुम कभी अकेली होगी, 
यह सुंदरता साफ और सुस्पष्ट दिखाई देगी तुमको। 
(2)
पा लेना ही अगर प्रेम होता हम राधा को क्यों गाते, 
मीरा के पद बार-बार हम तन्मय होकर क्यों दुहराते। 
क्यों पढ़ते साकेत, उर्मिला का वह विरह सुहाता क्योंकर, 
क्यों होता मशहूर भला मंसूर खुशी से चढ़ सूली पर। 

लुटना,घुटना, सहते जाना यही प्रेम की परिणति सच्ची;
जब तुम कभी अकेली होगी, 
यही दृष्टि तब पीड़ाओं से सकल विदाई देगी तुमको। 
(3)
तुम से मुझे मिला जो कुछ भी, वही बहुत है मेरी खातिर ;
इतनी बाधाओं के चलते, कर भी क्या सकते थे आखिर। 
जब तक मेरी एक साँस भी शेष तुम्हारा ऋणी रहूँगा, 
अपने गीतों में गा-गा कर तुम्हें सदा को अमर करूँगा।

मेरा प्रेम तुम्हें दुनिया का राजपाट दे नहीं सका पर-
जब तुम कभी अकेली होगी, 
रहकर दूर हमारी रग-रग सदा दुहाई देगी तुमको।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा

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