जबकि दुनिया सो रही है, जागता तू किस लिए है?
प्राण में यह पीर कैसी ,ज्वार यह कैसा ह्रदय में?
यह अभागे स्वप्न जागे, हाय किस शापित समय में!
जो न मिट पाए, न ही आकार ले पाए भली विधि,
यह अभावों की निशानी पालता तू किस लिए है ?
जबकि दुनिया सो रही है, जागता तू किस लिए है?
वह वचन उन्माद के आवेग में जो फूट निकले ,
मीत वह जो खुद रचाए बंधनों से छूट निकले?
ग्लानि जब उनको नहीं कुछ,लाज जब उनको नहीं कुछ;
जिंदगी के इस समर में हारता तू किस लिए है?
जबकि दुनिया सो रही है, जागता तू किस लिए है?
मानने को क्यों नहीं तैयार तू सब लुट चुका है ,
साथ जो था, हाथ उसका, सत्य ही जब छुट चुका है;
क्यों लिए विश्वास मन में, क्यों सजाए आस मन में;
मूर्खताओं से भरे दिन काटता तू किस लिए है?
जबकि दुनिया सो रही है, जागता तू किस लिए है?
प्रेम इस युग में ,अरे! क्यों बावलों सी बात करता,
प्रीति का इतिहास हर युग में रहा बसता बिखरता ;
शब्द यह उपहास सबको है लगा,तुझको नया क्या ,
प्रेम की खातिर जगत यह त्यागता तू किस लिए है?
जबकि दुनिया सो रही है, जागता तू किस लिए है?
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
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