शीर्षक - जिंदगी जो थी वो तो जी चुके
जिंदगी जो थी, वो तो जी चुके बहुत पहले,
अब तो दिन काटने का इंतजाम करना है।
अब तो है आखिरी घड़ी का इंतजार हमें,
अब तो ऊपर के बुलावे की राह तकना है।
वक़्त ने, ऐसा क्या है, जो न दिखाया हमको?
किस हकीकत का नहीं, सामना किया हमने?
चीज वह क्या है,जो महसूस नहीं की हमने?
कौन एहसास है, जिसको नहीं जिया हमने?
हमने बेजान पत्थरों में जान डाली थी,
हमने बेनूर खिजाओं में गुल खिलाए थे।
हमने बेरंग से चेहरों को रोशनी दी थी,
हमारे दम से चाँद तारे टिमटिमाए थे।
हमने हर एक ढँग से जिंदगी जी कर देखी,
हरेक पहलू से परखा उसे, जाँचा हमने।
जिंदगी की किताब के हरेक पन्ने को,
पूरी शिद्दत के साथ, दिल लगा, बाँचा हमने।
इसकी सच्चाइयों से अब हूँ रूबरू सारी,
इसके हर राज से वाकिफ हूँ बखूबी यारब।
प्यार मशहूर है जहाँ में, जफ़ाओं के लिए,
दुनिया, मतलब में नजर आती है डूबी, यारब।
पर्त दर पर्त सामने खुली पड़ी है अब,
इसे समेटने का तामझाम हो अब तो।
अपने रब से यही है एक इल्तिजा हरदम,
काम, जैसे हो, मेरा भी तमाम हो अब तो।
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
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