जिंदगी कितनी सहज है साथ तेरे।
(1)
इस विरसता पर हमारी लुब्ध होकर,
घोर तिमिराच्छन्न उर पर मुग्ध होकर;
प्रीति का प्रस्ताव लेकर आ गई हो,
दीप बनकर कालिमा पर छा गई हो।
कौन आकर्षण तुम्हें यह खींच लाया?
प्रेरणा ने किस, निकट मेरे पठाया?
कर रही हो दूर जो चुन चुन अँधेरे।
जिंदगी कितनी सहज है साथ तेरे।
(2)
देव का वरदान हो मेरे लिए तुम,
नवल जीवनदान हो मेरे लिए तुम।
हेतु हो अभिमान का मेरे लिए तुम,
कोष हो सम्मान का मेरे लिए तुम।
तुम मिलीं जब थी सकल निर्जीव आशा,
तुम मिलीं दम तोड़ती थी जब पिपासा।
तुम मिलीं, जब थी हताशा विकट घेरे,
जिंदगी कितनी सहज है साथ तेरे।
(3:
तुम मिलीं तब छा गया उल्लास तन में,
तुम मिलीं तब भर गया उत्साह मन में।
ज्योति का आगार हो मेरे लिए तुम,
राग का संसार हो मेरे लिए तुम।
आज पाकर के तुम्हें पाया नहीं क्या?
रत्न मेरे हाथ में आया नहीं क्या?
आज हैं तुम पर निछावर प्राण मेरे।
जिंदगी कितनी सहज है साथ तेरे।
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गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
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