Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिंदगी में बड़े मजबूर हो गए हैं हम

 
जिंदगी में बड़े मजबूर हो  गए हैं हम, 


जिंदगी में बड़े मजबूर हो  गए हैं हम, 
फिर से तन्हाइयों में अपनी खो गए हैं हम। 

प्यार करने में तुम्हें मैंने क्या उठा रक्खा, 
दिल में आठों पहर चेहरा तेरा बसा रक्खा। 

तुझको चाहा, तुझे माना, तेरी इबादत की ;
सारी दुनिया से बैर मोल लिया, आफत की। 

मगर तोहमत न तुमने कौन लगाई मुझ पर? 
कौन सी बात पे उँगली न उठाई मुझ पर? 

कठघरे में न तुमने कब खड़ा किया मुझको? 
गैर साबित तो बात बात पर किया मुझको। 

मेरी खुद्दारियों पे चोट लगाते ही रहे, 
मेरा मजाक बनाया तो बनाते ही रहे। 

मेरी मासूमियत के साथ में खिलवाड़ किया, 
मेरी पाकीजा उमंगों को तार-तार किया। 

खैर अब इन शिकायतों के मायने ही खतम, 
सभी शिकवों, सभी गिलों के तकाजे भी खतम। 

अब तो तुम राह पे अपनी, मैं राह पर अपनी ;
यह मोहब्बत थी सिर्फ एक आह भर अपनी। 

तुम्हारी फ़ितरतों ने प्यार को समझा ही नहीं 
खत्म है अब तो वह सवाल जो लगा ही नहीं। 

मेरा कभी भी  तुम्हें ऐतबार था ही नहीं, 
मेरी किस्मत में ये कम्बख्त प्यार था ही नहीं। 

-गौरव शुक्ल 
मन्योरा 
लखीमपुर खीरी 

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