Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिस दिन से तुमने अपनाया

 
बदल गई मेरी दुनिया ही, जिस दिन से तुमने अपनाया। 
                           (1)
साथ तुम्हारा पाकर कितनी, पीड़ाएँ मैंने बिसराईं, 
मेरे जीवन में तुम जैसे, मधु ऋतु की बयार बन आईं। 
अब तो यूँ लगता है तुम बिन, जीवन की कल्पना कठिन है ;
तुम हो तो हर रात दिवाली, है अपनी, होली हर दिन है। 

तुम हो मेरे साथ हमेशा, यही सोच मन में इतराया। 
बदल गई मेरी दुनिया ही, जिस दिन से तुमने अपनाया। 
                         (2)
मेरे तन के पोर-पोर में, समा गई है प्रीति तुम्हारी;
 इस निष्काम स्नेह के बदले, क्या देने की शक्ति हमारी? 
किन शब्दों में स्वागत करूँ, तुम्हारा समझ नहीं कुछ आता, 
 आज तुम्हारे सम्मुख खुद को, हूँ अत्यंत अकिंचन पाता। 

मुझे मिलीं तुम, जाने मेरा, कब का पुण्य उदय हो आया। 
बदल गई मेरी दुनिया ही, जिस दिन से तुमने अपनाया। 
                             (3)
तुमको लेकर, हैं कितने अरमान, हृदयमें मेरे जागे;
 मन करता है, तुम्हें साथ ले, चलूँ चाँद तारों से आगे। 
जहाँ सिर्फ औ' सिर्फ हमीं हों, ऐसा नूतन लोक बसाऊँ;
तुम अभिभूत हो उठो सुनकर, ऐसा कोई गीत रचाऊँ। 

है निस्सीम भावनाएँ, क्या कह डालूँ, क्या रखूँ बकाया? 
बदल गई मेरी दुनिया ही, जिस दिन से तुमने अपनाया। 

-गौरव शुक्ल
मन्योरा

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