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काश! भावना तुमने मेरी जानी होती

 
'' काश! भावना तुमने मेरी जानी होती''

काश! भावना तुमने मेरी जानी होती। 
                     (1)
काश!हृदय की चौखट तक तुम आए होते, 
काश! गीत तुमने मेरे भी गाये होते। 
काश! लाज का बंधन थोड़ा खोला होता, 
काश! तुम्हारा मन भी मुझ सा डोला होता। 

तो शायद अपनी कुछ और कहानी होती। 
काश! भावना तुमने मेरी जानी होती। 
                       (2)
मेरी आँख देखती थी ज्यों स्वप्न तुम्हारा, 
मेरी रसना ने तुमको जिस भाँति पुकारा। 
मेरे कान तुम्हारी आहट को ज्यों तरसे, 
मेरे मन पर तुम जैसे सावन बन बरसे। 

ऐसी ही तुम पर बरसात सुहानी होती। 
काश! भावना तुमने मेरी जानी होती। 
                       (3)
आकुलता तुममें भी मुझ जैसी होती कुछ, 
जद्दोजहद तुम्हारे भीतर भी होती कुछ। 
अनुभूतियाँ तुम्हें भी पागल कर कर जातीं, 
बोझ सैकड़ों टन छाती पर धर धर जातीं। 

पाने की मुझको तुमने भी ठानी होती। 
तो शायद अपनी कुछ और कहानी होती। 
काश! भावना तुमने मेरी जानी होती।
               - - - - - - - - - -
गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी

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