काश! कोई देखता जी भर हमें।
काश! कोई देखता जी भर हमें।
(1)
हर तमन्ना ही अधूरी रह गई,
हर किसी से एक दूरी रह गई,
बात कुछ सबसे जरूरी रह गई,
देखता ही रह गया मैं रास्ता, पर मिला कोई नहीं आकर हमें।
काश कोई देखता जी भर हमें ।
(2)
शक्ल भी तो कुछ न मेरी खास थी,
बुद्धि विद्या भी न मेरे पास थी,
लच्छिमी मुझसे सदैव उदास थी,
फिर भला कोई वजह किस खास से,सौंपता कुछ प्रेम, कुछ आदर हमें ।
काश कोई देखता जी भर हमें ।
(3)
फिर गया वह, मिल गई जिससे नजर,
दिल दिया जिसको, न आया लौटकर,
क्या पता किस बात का था यह असर,
भाग्य मेरा था लिखा कैसे गया, जो हमेशा ही मिला पतझर हमें।
कारा कोई देखता जी भर हमें।
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
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