Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कौन तेरी कर रहा परवाह !!

 
कौन तेरी कर रहा परवाह !!

तू जिए या फिर मरे क्या फर्क पड़ता है किसी को ,
पथ किसी का कौन सा अवरुद्ध होने जा रहा है ।
मस्त है दुनिया स्वयं में ,व्यस्त है दुनिया स्वयं में ,
किस लिए नाहक किसी से तू लगा आशा रहा है ।

है किसे अवकाश जो नापे यहाँ सुख-दुख तुम्हारा ,
पूछने आए कुशल मंगल तुम्हारे द्वार चलकर ।
वेदना को देख तेरी भीग जाएं नेत्र जिसके ,
पोंछने लग जाय तेरे अश्रु ढिग तेरे ठहर कर ।

सुन पुकारों को तेरी अविलंब भागें पग कहाँ वह ,
कर कहाँ वह, जो कि तेरी पीठ पर फिर हौसला दे ।
जल्पना तेरी सुनें जो कान दुर्लभ हो गए वह ,
वह कहाँ वाणी कि तेरे पीर जो उर की गला दे ।

अति अधिक दुर्भाग्य की इससे इतर क्या और होगी ,
आज तेरे साथ हँसने बोलने वाला न कोई ।
आज तेरी बात सुनने समझने वाला न कोई ,
आज तेरे साथ उठने बैठने वाला न कोई ।

है अकेलापन चरम पर श्वाँस लेकिन चल रही है ,
स्यात् जीवन की विसंगति देखनी कुछ शेष अब भी ।
स्यात् अब भी है किसी विश्वास पर आघात बाकी ,
छल कपट की भेंट शायद भेंटनी कुछ शेष अब भी ।

भाग्य में तेरे दिवस जितने विधाता ने दिए लिख ,
काटने से पूर्व उनके मृत्यु भी आनी नहीं है ।
रो गुजारे, हँस गुजारे, जी करे जैसे गुजारे ,
रंच भी उनमें कटौती किंतु हो पानी नहीं है ।

जो दिखाता है समय, धर धीर उसको देखता चल ,
आम के भी पेड़ में काँटे बबूलों के मिले यदि - 
वृक्ष खाते फल मिलें, सरिता मिलें यदि नीर पीती ,
फूल बदबूदार शाखों पर गुलाबों की खिलें यदि - 

तो नहीं आश्चर्य करना, संक्रमण का दौर है यह ,
तीव्रता से मूल्य जीवन के बदलते जा रहे हैं ।
'प्रेम' होकर संकुचित सीमित हुआ है पुस्तकों तक ,
शब्द में ही सिर्फ हम 'संवेदना' सुन पा रहे हैं ।

क्या भरोसा,आस क्या,विश्वास क्या,क्या बल किसी का ,
तुम बने चातक रहो घन श्याम आने को नहीं है ।
दो विकारों को विदा यदि शांति पाना चाहते हो ,
अन्यथा इस लोक में कुछ मुस्कुराने को नहीं है ।
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-गौरव शुक्ल 
मन्योरा

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