Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कवि का धर्म

 

कवि का धर्म


कवि का धर्म, जले दीपक सा जब-जब संध्या वदन पसारे, 
कवि का धर्म, दीप बुझते हों जब, तब बन मार्तंड पधारे। 
कवि का धर्म, शोषितों दलितों की वाणी को स्वर देना है, 
कवि का धर्म, परास्त हौसलों में नव जीवन भर देना है। 

कवि का धर्म, बधिर नेताओं को उनके दायित्व बताना, 
कवि का धर्म, विपथ शासन को राजधर्म का पाठ पढ़ाना। 
कवि का धर्म, मग्न निद्रा में है समाज का जो भी कोना, 
कवि का धर्म, चर्म में उसके, सुई बनाकर कलम चुभोना। 

कवि का धर्म, छद्म छल वाली राजनीति का तहस-नहस है, 
कवि का धर्म, न्याय की रक्षा हित धारना तीर तरकश है। 
कवि का धर्म, अधर्म किसी के प्रति न कहीं भी होने पाए, 
कवि का धर्म, मनुष्य नहीं अब फुटपाथों पर सोने पाये। 

कवि का धर्म, मिले हर भूखे को रोटी, प्यासे को पानी, 
कवि का धर्म, न रोजगार के लिए भटकती फिरे जवानी। 
कवि का धर्म, बदी पर नेकी की कर जाना जीत सुनिश्चित, 
कवि का धर्म, वृद्ध, अबला, बालक की हो अस्मिता सुरक्षित। 

कवि का धर्म, ज्वलित अंगारों पर जीवन भर चलते रहना, 
कवि का धर्म, तपस्या नरता के विकास की करते रहना। 
कवि का धर्म, सतोगुण वाली प्रवृत्तियों का परिष्कार है, 
कवि का धर्म, तमोगुण सेवित कुविचारों का तिरस्कार है। 

कवि का धर्म, वहाँ तक पहुँचे, रवि भी पहुँचा नहीं जहाँ तक, 
कवि का धर्म, नाप कर देखे, प्रसरित है ब्रह्मांड कहाँ तक। 
कविता कठिन, किंतु उससे भी कहीं कठिन कवि-धर्म निभाना, 
वसुधा की संपूर्ण वेदनाओं के सँग तादात्म्य बिठाना। 

कविता एक चुनौती है, यह हास नहीं, परिहास नहीं है, 
कविता केवल तुकबंदी भर करने का अभ्यास नहीं है। 

सर्व हिताय, सुखाय सर्व, यह सुरसरि की पुनीत धारा है, 
यह उपासना की पद्धति है, जिसको हमने स्वीकारा है। 

कविता केवल जोड़-तोड़ शब्दों का नहीं हुआ करती है, 
अजर, अमर, अविनश्वर है यह, दिगदिगंत में रस भरती है।
                      - - - - - - - - - - - - -
-गौरव शुक्ल
मन्योरा

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ