Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खत्म नहीं है कविता मुझमें

 
खत्म नहीं है कविता मुझमें, जब तक मुझमें तुम जीवित हो। 

तब तक दम लेगी न लेखनी, जब तक उठता हाथ रहेगा, 
बैठा हुआ पपीहा पेड़ों पर जब तक 'पी कहां' कहेगा। 
आधी रात मयूरी जब तक सन्नाटा चीरती रहेगी।
कोयल मधुर तान  तानेगी, सन सन करती पवन बहेगी।

तब तक मेरे गीत रहेंगे सुनने और सुनाने वाले,
आएंगे जाएंगे मुझको प्रासंगिक ठहराने वाले। 

मेरे गीत रहेंगे जीवित जब तक इनमें तुम जीवित हो। 
खत्म नहीं है कविता मुझ में जब तक मुझमें तुम जीवित हो। 

जीत गईं तुम, हार गया मैं, देखो, अब तो खुश हो जाओ;
भूल गई तुम, किंतु नहीं मैं भूला यह आनंद मनाओ। 
इतराओ, अब भी पहले सा तुम में आकर्षण बाकी है;
बलि जाओ, बाणों में अब भी वह ही पैनापन बाकी  है।

पहले से भी ज्यादा आती हो मेरे सपनों में खुलकर, 
आठों पहर गिराती रहती हो बिजली पहले सी मुझ पर। 

शांति कहां है मुझको जब तक मेरे मन में तुम जीवित हो। 
खत्म नहीं है कविता मुझ में जब तक मुझमें तुम जीवित हो। 

अधिकाधिक जीवन में अपने सुख जैसे हो सके जुटा लो, 
कैसे सबको खुश रक्खा जाए इसकी तरकीब निकालो। 
यश पाओ अकलंक तोड़कर मुझसे सारे रिश्ते नाते, 
धोकर सारे दाग न हिचको मुझ से दूरी नित्य बढ़ाते।

वह ऊंचाई पाओ जिसको देख दिवाकर शरमा जाएं,
जब तुम सज धज कर निकलो तब कामदेव भी शीश झुकाएं।

हैं उपमान अहैतुक सारे जब तक जग में तुम जीवित हो। 
खत्म नहीं है कविता मुझ में जब तक मुझमें तुम जीवित हो।

-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर-खीरी
मोबाइल - 7398925402

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