Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किस ओर मुझे जाना है

 
कुछ पता नहीं किस ओर मुझे जाना है। 

कुछ पता नहीं किस ओर मुझे जाना है,
कुछ पता नहीं क्या खोकर क्या पाना है।

मैं लक्ष्यहीन, पथभ्रांत पथिक जैसा हूँ,
खुद मुझको पता नहीं है, मैं कैसा हूँ?

जाने कैसी व्यग्रता भरी है मन में,
क्या खोज रहा हूँ पता नहीं जीवन में?

अपने पग आप कुठार मारता रहता,
जिस डाल बैठता वही काटता रहता।

अन्याय साथ अपने करता आया मैं,
यह विडंबना जन्मतः साथ लाया मैं।

अपने सपने खुद बेच दिए हैं मैंने।
ऐसे भी कुछ अपराध किए हैं मैंने।

मेरी तिजोरियों में बस भरी घुटन है,
बस एकमात्र पीड़ा ही मेरा धन है।

जलने को मेरे पास हृदय काफी है,
खोने को मेरे पास न कुछ बाकी है।

वैभव पाने के लिए न कभी लड़ा हूँ।
दैवात अकिंचनता में बहुत बड़ा हूँ।

है पाप पुण्य का पता न जोड़ घटाना,
आ पाया नहीं कभी व्यवहार निभाना।

सुख नहीं किसी को दे पाया जीवन में,
पछतावा होता सोच-सोचकर मन में।

कुछ पता नहीं कैसे यह क्लान्ति मिटेगी,
शायद मरघट में ही अब शांति मिलेगी।

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-गौरव शुक्ल
मन्योरा

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