Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं अकेला जी सकूँगा

 
      मैं अकेला जी सकूँगा।
            (1)
        तुम न मेरा साथ दोगे,
        दूर कतरा कर चलोगे,
        छाँव से मेरी बचोगे,
      
तो बचो , पर देख लेना मैं न इतने से मरूँगा ।
         मैं अकेला जी सकूँगा ।
            (2)
        मैं बुरा हूँ तो तुम्हें क्या,
        मैं भला हूँ तो तुम्हें क्या,
        मैं लुटा हूँ तो तुम्हें क्या,

मैं न हमदर्दी तुम्हारी, प्राप्त करने को रुकूँगा ।
        मैं अकेला जी सकूँगा ।
            (3)
        दो जिसे चाहो सहारा,
       औ' करो मुझसे किनारा,
        मैं तुम्हारा दाँव हारा,

तुम न मेरे हित बने थे, आज से यह मान लूँगा।
       मैं अकेला जी सकूँगा। 
            - - - - - - - - 
गौरव शुक्ल 
मन्योरा


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