Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं हँसा तो हँस पड़ा था

 

मैं हँसा तो हँस पड़ा था


मैं हँसा तो हँस पड़ा था  मेरे विश्व सारा, 

किंतु रोते वक्त कोई दूर तक दिखता नहीं है। 

                        (1)
सत्य है सुख के सभी साथी हुआ करते जगत में,
मोड़ लेते मुँह मगर जब हैं घिरा पाते विपद् में।
वेदना के सिंधु में जब डुबकियाँ गहरी लगाईं,
जिंदगी की क्रूरतम सच्चाइयाँ तब पास आईं। 

अनुभवों ने सत्य की व्याख्या समूची पेश कर दी,
दैन्यता के साथ कोई जोड़ता रिश्ता नहीं है।
मैं हँसा तो हँस पड़ा था साथ मेरे विश्व सारा,
किंतु रोते वक्त कोई दूर तक दिखता नहीं है।
(2)
जब बहारों का समय था, झुंड भँवरों के खड़े थे,
पतझड़ों के साथ लेकिन हम अकेले ही लड़े थे।
सोचना क्या? इस समर में हो गए यदि हम पराजित,
हार कर भी कर लिया हमने बहुत-सा ज्ञान अर्जित। 

जब हृदय अपने दुखाएँ और रोना ही पड़े, तब-
पोछने को अश्रु, अपना हाथ भी उठता नहीं है।
मैं हँसा तो हँस पड़ा था साथ मेरे विश्व सारा,
किंतु रोते वक्त कोई दूर तक दिखता नहीं है।
(3)
छोड़ देतीं साथ हैं दुख के समय परछाइयाँ भी,
दुर्दिनों में टूट जातीं खास रिश्तेदारियाँ भी।
जब कभी महसूस होती है सहारे की जरूरत,
छूटते संबंध जो होते बहुत ही खूबसूरत। 

है जगत की रीति ही, इस रीति पर आश्चर्य कैसा?
नाव में टूटी हुई, कोई सफर करता नहीं है।
मैं हँसा तो हँस पड़ा था साथ मेरे विश्व सारा,
किंतु रोते वक्त कोई दूर तक दिखता नहीं है।
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गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
मोबाइल-7398925402

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