Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैंने जग को जीने की कला सिखाई है

 
विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन जीकर ,
मैंने जग को जीने की कला सिखाई है।
(१)
धारा के साथ बहे जाने वाले देखे !
जैसे का तैसा अपनाने वाले देखे !
पथ सुगम सभी के मन को सहज लुभाता है ,
फूलों पर चलते जाना किसे न आता है?

मैंने कांटो के पथ पर नंगे पांव निकल ,
चलने की गौरवपूर्ण युक्ति बतलाई है।
(२)
विपदा में भी किस तरह हॅंसा गाया जाए?
संकट में भी किस भांति मुस्कुराया जाए?
इसकी विधि मेरा जीवन तुम्हें सिखाएगा;
पीड़ाओं पर तुमको यह विजय दिलाएगा।

मेरा जीवन इतिहास उठाकर पढ़ लेना,
मेरे गीतों में गल्प नहीं, सच्चाई है।
(३)
 सुनता था, कह देने से दुख घट जाता है ,
कुछ दर्द बांट देने से भी बॅंट जाता है।
 पर मेरे अनुभव पर यह बात नहीं ठहरी,
 मेरी कसौटियों के ऊपर न खरी उतरी।
 
 अपने दुख दर्दों से खुद ही लड़ना सीखो,
 कहने से केवल होती जगत् हंसाई है ।
(४)
जो सम्मुख है उसका बढ़कर सम्मान करो ,
अपने बल ,अपने पौरुष पर अभिमान करो।
 संघर्ष तुम्हारा , मंजिल तुम्हें दिलाएगा ,
जो छूट गया, वह खुद पीछे पछतायेगा।

 मत रुको ,नहीं ठहरो ,पीछे मुड़ मत देखो ;
जीवन में मिलती रोज नहीं तरुणाई है।

विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन जीकर ,
मैंने जग को जीने की कला सिखाई है।
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- गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
मोबाइल-7398925402

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