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Dr. Srimati Tara Singh
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मैंने मृत्युदंड के जैसा जीवन पाया है

 
मैंने मृत्युदंड के जैसा जीवन पाया है


मैंने     मृत्युदंड     के जैसा जीवन पाया है,
मेरे अपराधों    की सूची  बहुत बड़ी होगी। 
                     (1)
मृत्युदंड के जैसा है     लेकिन है  मृत्यु नहीं, 
है मेरे जीवन में जीवन     ही खो गया कहीं। 
फाँसी पर फाँसी लगती   रहती है रोज मुझे, 
और मृत्यु भी आ आकर डसती है रोज मुझे। 

मृत्युदंड-सा जीवन कहना कुछ विचित्र है पर, 
मेरे हित इससे उपमा क्या  और कड़ी होगी? 
मैंने   मृत्युदंड   के जैसा      जीवन   पाया है,
मेरे अपराधों की    सूची     बहुत बड़ी होगी। 
                       (2)
सोच रहा था इस दुनिया में खेलूँगा खुलकर, 
जीवन की हर एक घड़ी को काटूँगा हँसकर। 
पता नहीं था    पहरे बैठे होंगे  कदम-कदम, 
मेरी हर इच्छा की    निगरानी होगी हरदम। 

पता नहीं था हाथों में हथकड़ी लगी होगी, 
पता नहीं था पैरों में बेड़ी   जकड़ी होगी। 
मैंने मृत्युदंड के    जैसा   जीवन  पाया है,
मेरे अपराधों की सूची    बहुत बड़ी होगी। 
                        (3)
कदम कदम पर मुझे झेलने को समाज होगा, 
मेरे स्वप्न       देखने पर भी    एतराज  होगा। 
विषयों का मुझको   गुलाम ठहराया जाएगा, 
मेरे सिर यह भी     इल्जाम लगाया जाएगा। 

जिस पथ पर बढ़ना चाहूँगा, ठोकर खाऊँगा, 
हर पग पर बाधा मेरे    सामने    अड़ी होगी। 
मैंने मृत्युदंड के    जैसा   जीवन      पाया है,
मेरे अपराधों की सूची     बहुत   बड़ी होगी। 
                         (4)
मुझ पर देवों से चरित्र का   आरोपण होगा, 
मेरी स्वाभाविकताओं का समाकलन होगा। 
मेरी दुर्बलता      दोषी     ठहराई    जाएगी, 
मेरी एक एक त्रुटि की   गणना की जाएगी। 

मेरे सारे      व्यवहारों पर    प्रश्नचिन्ह होंगे, 
मेरे सम्मुख  उम्मीदों की फौज खड़ी होगी।
मैंने मृत्युदंड के     जैसा   जीवन  पाया है,
मेरे अपराधों की सूची    बहुत बड़ी होगी।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा

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