Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मनाली

 

'मनाली '

तुम बहुत ही याद     आओगे,मनाली !

                     (१)

जिंदगी के कुछ दिवस अपनी, बिताकर,

हो गया दिल खुश    यहाँ छुट्टी मनाकर।

खूबसूरत यह        छटा मनमोहती  सी,

गोद में मानो       प्रकृति हो खेलती सी।


खींचते हैं दृश्य   यह     मन को मनोहर,

गीत     जैसे गा रहे     चहुँ ओर निर्झर।

स्वच्छ सम्मुख 'व्यास' कल-कल बह रही है,

कान में जैसे कथा       कुछ कह रही है।


है हिडिम्बा      का यहाँ मंदिर    निराला,

थी घटोत्कच    की यहीं पर   कर्मशाला।

खौलता    मणिकर्ण का   जलस्रोत देखा,

खिंच गई       मस्तिष्क में आश्चर्य-रेखा।


'पार्वती'   नामक नदी    का यह  किनारा,

तप    उमा शिव  ने किया इस ठौर न्यारा।

और     वह  शोलांग घाटी       के नजारे,

हिमाच्छादित   श्रृंग हैं क्या    खूब  प्यारे।


है कठिन निर्णय, लिखूँ क्या? छोड़ दूँ क्या?

कौन सा संबंध जोडूँ?          तोड़ दूँ क्या?


हम यहाँ      आकर हुये      सौभाग्यशाली।

तुम बहुत     ही याद    आओगे     मनाली।

                       (२)

कह रहा है मन      किसी तरु के तले रुक,

लूँ यहाँ की स्वर्ग       जैसी शांति का सुख।

देवदारों के घने,     गहरे           विजन में,

लेटकर      आनंद लूँ इस   वन सघन   में।


या कलम     को थाम   अपनी उँगलियों में,

बैठ,    कविताएँ लिखूँ इन       वादियों में।

इस हसीं,     जादूभरी,     मादक हवा को,

प्राण तक  भर लूँ प्रकृति की इस कला को।


सींच लूँ      अंत:करण,   हो तृप्त   जाऊँ,

बन यती,    धूनी यहीं     अपनी   रमाऊँ।

त्राण पाऊँ,       हर तृषा,     हर वेदना से,

मुक्त होऊँ,   लोक    की हर     एषणा से।


मोह में      आकंठ     डूबा     जा  रहा हूँ,

संवरण निज   लोभ,    कर ना पा  रहा हूँ।

पर     बुलाता है उधर     अपना शहर भी,

मात्र घर ही तो न,चिर-परिचित डगर भी।


लौटता      हूँ    छोड़कर तुझको भरे मन,

फिर मिलूँगा,       यदि रहेगा शेष जीवन।


मित्रता    मन से न       जायेगी निकाली।

तुम बहुत ही याद         आओगे मनाली।

                      -------

                                     -गौरव शुक्ल

                                          मन्योरा

                                 लखीमपुर खीरी


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