मतदान करो,
मतदान करो मतदान करो।
मतदान करो बेशक, लेकिन यह ध्यान रहे,
तुम जिसे वोट करने की खातिर जाते हो ;
वह पात्र उचित है वोट तुम्हारा पाने का,
सब भाँति भरोसे लायक उसको पाते हो?
क्या देख लिया है तुमने भली-भाँति कसकर,
जो वोट माँगने द्वार तुम्हारे आए हैं ;
वह अपने पिछले पाँच साल के वादों का,
समुचित हिसाब भी साथ-साथ क्या लाए हैं?
देखना ध्यान से तुम उनके गुलदस्तों को,
फिर वही फूल बासी तो नहीं पुराने हैं ;
हिंदू,मुस्लिम,पंडित,बनिया,धोबी,धानुक,
संवाद वही फिर क्या जाने पहचाने हैं।
हिंदू को मुस्लिम का, मुस्लिम को हिंदू का,
फिर एक बार भय घोर दिखाया जाएगा ;
फिर कब्रिस्तानों से लेकर शमशानों तक,
तुमको कितनी ही बार घुमाया जाएगा।
फिर जज्बातों को भड़काने की कोशिश में,
भाषा की मर्यादाएँ लाँघी जाएँगी ;
विघटनकारी शक्तियाँ रूप विकराल धार,
फिर गहन कंदराओं से बाहर आएँगी।
वह बात करेंगे तुमसे मंदिर मस्जिद की,
तुम स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा पर सवाल करना।
वह मुर्दे गड़े उखाड़, उछालेंगे तुम पर,
तुम 'रोजगार है कहाँ' पूछना, अड़ रहना।
क्यों सड़क तुम्हारे दरवाजे तक आ न सकी?
बिजली से घर क्यों रोशन नहीं हुए अब तक?
पीने को पानी साफ मुहैया कब होगा?
बे घर को घर मिल पाएगा आखिर कब तक?
है एक आदमी, जिसके पास मकान बीस,
हैं बीस, रात कटती जिनकी फुटपाथों पर।
है एक, भोग छप्पन हैं जिसकी थाली में,
हैं छप्पन, जो जी रहे नमक रोटी खा कर।
भारत माँ की संतानों के इस अंतर पर,
पूछना, तुम्हारी आँख कभी रोई है क्या?
इस कुटिल, असभ्य विसंगति के परिमार्जन हित,
योजना तुम्हारे बस्ते में कोई है क्या?
क्या एक बार खाकर गरीब के घर खाना,
फोटो खिंचवा कर, पाप मुक्त हो जाओगे?
क्या एक बार स्वच्छाग्रहियों के पद पखार,
उनके प्रति अपना कुल सद्धर्म निभाओगे?
यह भी पूछना कि लेकर वोट गरीबों से,
दिन पर दिन कैसे तुम अमीर हो जाते हो?
आलू से सोना गढ़ सकने वाली मशीन,
का, अता पता हमको क्यों नहीं बताते हो?
जिम्मेदारी कंधों पर कठिन तुम्हारे है,
बेहद सतर्क रहने की आवश्यकता है।
पूर्वाग्रह छोड़ व जाति धर्म से ऊपर उठ,
मतदान कर सके, तो मत की सार्थकता है।
मतदान करो लेकिन मत दान विवेक करो,
जीता हर भारतवासी का सम्मान रहे।
अपनी 'अनेकता में एकता' लिए विशिष्ट,
संस्कृति की दुनिया में कायम पहचान रहे।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
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