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मेरी पीड़ा पर अपना निश्छल अनुराग लुटाने वाले!

 
मेरी पीड़ा पर अपना निश्छल अनुराग लुटाने वाले!

मेरी पीड़ा पर अपना निश्छल अनुराग लुटाने वाले! 
मेरे पास तुझे संबोधित करने लायक शब्द नहीं हैं।
                              (1)
उपकृत हूँ, यह कहूँ अगर तो भी तुझको स्वीकार नहीं है, 
तुझे गँवारा    मेरा     कृतज्ञता पूरित      व्यवहार नहीं है। 
तेरा बहुत-बहुत आभारी हूँ, यह भी कहने में       भय है, 
 मेरी ऐसी हर चेष्टा पर भी       आपत्ति तुझे अतिशय है। 

 मेरे उजड़े  उपवन में फिर से     बहार लौटाने वाले! 
मेरे पास तुझे अभिनंदित करने लायक शब्द नहीं हैं। 
                              (2)
 उमा, रमा, सीता, सावित्री, जैसी तुम लगती हो मुझको,
 गंगा,  गीता, गायत्री से   भी पवित्र दिखती हो मुझको। 
तेरे दिल को ठेस  पहुँचती है,    लेकिन,    ऐसा बोलूँ तो, 
सिकुड़ नाक भौं जाती है तेरी, यदि यह चिट्ठा खोलूँ तो। 

अपने मन से, वाणी से, कर्मों से मुझे लुभाने वाले! 
मेरे पास तुझे आकर्षित करने लायक शब्द नहीं हैं। 
                              (3)
तुम कहती हो     मुझे प्यार के बदले   केवल प्यार करो तुम ,
रत्नों, मुक्ताओं, मणियों    से, मत     मेरा सत्कार करो तुम। 
 लिख सकते हो तो फिर मेरी खातिर कुछ ऐसा लिख जाओ, 
 मेरी याद रहे       युग - युग   तक जीवित ऐसा गीत रचाओ। 

तुझसे कैसे कहूँ कि मुझको यह दायित्व थमाने वाले! 
 मेरे पास तुझे सम्मानित करने लायक शब्द नहीं हैं । 
                           ______________
गौरव शुक्ल 
मन्योरा 

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