Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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'न्यूटन भाई के निधन पर '

 
'न्यूटन भाई के निधन पर '

हो गए आज से सपना तुम! 

भाई बोलूँ या मित्र कहूँ कुछ नहीं समझ में आता है, 
हो गई बुद्धि जड़वत रुठा असमय किसलिए विधाता है? 
चाची चच्चा हैं व्यथित बहुत कुछ ढाढस उन्हें बँधा जाओ, 
अम्मा पापा की पीड़ा का कुछ तो विकल्प बतला जाओ। 

'राजू ददुआ' कलकत्ते से घर लौट आज फिर आए हैं, 
लेकिन तुम मिले नहीं आकर यह देख बहुत पछताए हैं। 
क्यों हाल नहीं पूछा उनका,क्यों नहीं कहा अब मत जाना, 
घर में रूखी सूखी जो भी मिल जाए खाकर सुख पाना। 

'दीपू दादा' के हाथ पैर कैसे कट गए देख जाते, 
'बुद्धा ददुआ' के दुःखों पर कुछ आज बोलते समझाते। 
'पंकज', 'छुन्ने' की व्यथा देख क्यों आज दया आती न तुम्हें, 
करुणा खो गई कहाँ सारी क्यों धैर्य बंँधाते नहीं उन्हें? 

उठ कर देखो तो दिल्ली से 'राहुल' है आज लौट आया, 
रो-रो कर बुरा हाल उसका पाकर न तुम्हें है कुम्हलाया। 
बस तुम्हें छोड़कर सारे भाई वृंद उपस्थित आज यहाँ, 
कुछ समझ नहीं आता ढूँढे जाकर हम तुमको भला कहाँ। 

'रिक्की' को कौन बताए अब खेती कैसे की जाएगी? 
गेहूँ, गन्ना, लाही की कैसे फसल उगाई जाएगी? 
क्या 'लवी','अवी' से कहें कि तुम जाकर छुप गए कहाँ पर हो, 
क्या कहे 'हर्ष' से 'शांतनु' से उठते न आज तुम क्यों कर हो? 

क्यों नहीं देखते हो आकर तुम आज 'ओम' की शैतानी, 
क्यों नहीं देखते हो आकर 'शक्ती' बेटे की नादानी।
है चार साल का हुआ अभी उससे कैसे मुंँह मोड़ गए, 
हा! इसी अल्पवय में उससे रिश्ते नाते सब तोड़ गए।

'नेहुल' 'सम्राट' राह तकते क्या गोदी नहीं खिलाओगे? 
तुतली बातें सुन सुन उनकी क्या और नहीं इठलाओगे? 
भाभी बेहद सदमे में है उनसे क्या कहो कहूँ जाकर,
हरदम हँसती रहती थीं जो टूटा दुख का पहाड़ उन पर। 

सँभलेंगी कैसे और सँभालेंगी कैसे घर बार कहो? 
इस भीषणतम दुख से आखिर कैसे पाएँगी पार कहो? 
'नीरू दीदी' धौरहरा से आई हैं नहीं उठोगे क्या? 
'मन्नो' बस्तौली से आई है हाल नहीं पूछोगे क्या? 

'बड्डो दीदी' 'रश्मी' 'रचना' 'बबली' सब बहनें आज यहाँ, 
तुम करवट भी ले रहे नहीं खोए हो आखिर कहो कहाँ? 
'जूही' 'पप्पी' 'सूर्या' रोतीं चुप उनको नहीं कराओगे? 
सबको सांत्वना बँधाने को क्या कभी नहीं अब आओगे? 

इतना दारुण सच सहें भला कैसे अब जाता सहा नहीं, 
वह सब किस तरह जिएँ जिनसे तुम बिन जाता था रहा नहीं? 
तुम बिन जीवन जीने की आदत अब तक नहीं रही हमको, 
हम साथ-साथ सहते आए अब तक हर खुशी और गम को। 

 किस तरह चलेंगे कदम नहीं जो उठते बिना तुम्हारे थे, 
 हम सभी भाइयों में मेरे भाई तुम सबसे न्यारे थे। 
 मुश्किल से मुश्किल घड़ियों में हिम्मत के साथ डटे रहना, 
 भारी से भारी संकट को धीरज के साथ सदा सहना। 

अपने ही नहीं गैर के भी मौके पर सदा काम आना, 
सब की मुसीबतों में हर संभव मदद हमेशा पहुँचाना। 
जो काम किए तुमने अब तक वह याद बहुत ही आएँगे, 
हम कितनी भी कोशिश कर लें पर तुमको भुला न पाएँगे। 

पूरा का पूरा गाँव दुखी रोते आँगन गलियारे हैं, 
रो रहा चाँद, धरती रोती, रोते अंबर पर तारे हैं। 
मेरे भाई, मेरे साथी, मेरे दद्दा अब जागो भी, 
आलस जो कभी न करते थे उस आलस को अब त्यागो भी। 

'नव्या' 'मान्या' 'सिद्धी' 'पूर्वी' 'चेतना' सभी गुमसुम-गुमसुम, 
फट पड़ा वज्र कितना भारी है उन्हें न सही-सही मालुम। 
उन सबके हिस्से का अनुपम निश्छल कुल लाड़ दुलार लिए, 
तुम निकल गए किस यात्रा पर अपना स्नेहिल संसार लिए? 

कुछ समझ नहीं आता भैया क्या कहें कहाँ रोएँ जा कर, 
किस-किस को चुप करवाएँ हम तुमको अपने न बीच पाकर।
सूना सारा संसार आज तुम नहीं साथ तो सुख कैसा? 
धन, धरा, धाम, सब मिथ्या है मिट्टी सारा रुपया पैसा।

दें किसको दोष, किसे कोसें, किस पर इल्जाम लगाएँ हम, 
था भाग्य हमारा ही खोटा किस-किस को यह समझाएँ हम। 
बचपन से लेकर आज तलक हम साथ-साथ रहते आए, 
सारे दुख सुख हम एक दूसरे से सदैव कहते आए। 

हम साथ-साथ ही स्कूल गए हम साथ-साथ खेले, खाए ;
हम बिना तुम्हारे और हमारे बिन न कभी तुम रह पाए। 
अब स्वर्ग लोक में मेरे बिन किस तरह रहोगे बोलो तो? 
अपनी दास्तान समूची किससे वहाँ कहोगे बोलो तो? 

किस से मन की गाँठें खोलोगे उठकर जरा बताओ तो? 
मुझ पर जितना था गर्व, करोगे किस पर अब समझाओ तो? 
भैया अजीत कह-कह कर के तुम किसको वहाँ पुकारोगे?
'कैथा' 'चेनी' 'अँबिया' किसके सँग वहाँ तोड़कर खाओगे?

'रेडी नंबर चुम' 'लपचू'  तुम खेलोगे किसके साथ वहाँ?
होली खेलने और मिलने जाओगे किसके साथ वहाँ? 
 है ज्ञात, व्यर्थ सारा प्रलाप तुम कभी न अब उठने वाले, 
अब कभी न कुछ कहने वाले, अब कभी न कुछ सुनने वाले। 

 जग का यह कड़वा सच हमको रो धोकर सहना ही होगा, 
 कुछ भी कर लें पर जीवन भर अब तुम बिन रहना ही होगा। 
 जाओ भाई जाओ प्रभु के बैकुंठ लोक में वास करो, 
ज्यों किया प्रकाशित धरती को त्यों ही स्वर्ग में प्रकाश करो।

-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी

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