Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ओ मेरे जीवन से असमय जाने वाले

 
ओ मेरे जीवन से असमय जाने वाले! 

''ओ मेरे जीवन से असमय जाने वाले !
अब मेरे मन से भी जाना, तब जानूँगा।
(१)
सुबह-शाम,दिन-रात,जागते-सोते,हर क्षण,
तेरी सुधियों के ही तार जोड़ता रहता।
तेरी मीठी-मीठी बातों का रस लेता,
तेरे नाजों-अंदाजों का संग्रह करता।
 
तेरे साथ बिताये जाने वाले क्षण ही,
अब मेरे इस जीवन की संचित पूँजी हैं।
 
ओ मेरा सब कुछ हर लेने वाले ! मेरी,
यह पूँजी लेकर दिखलाना ,तब जानूँगा।
ओ मेरे जीवन से असमय जाने वाले !
अब मेरे मन से भी जाना तब जानूँगा।
(२)
तुमने अपने बीच बना ली इतनी दूरी,
तुमसे मिलने को हरेक पल तरस रहा हूँ;
हैं मेरी अभिलाषाओं के पाँव थक गये,
कैसे कहूँ,स्वयं में मैं किस तरह दहा हूँ।
 
पर अब मैंने एक युक्ति ऐसी पा ली है,
रोज रात में तुम्हें बुलाकर बातें करता।
 
ओ मेरे सपनों में खुलकर आने वाले !
इस पर भी प्रतिबंध लगाना, तब जानूँगा।
ओ मेरे जीवन से असमय जाने वाले !
अब मेरे मन से भी जाना तब जानूँगा।
(३)
खूब ध्यान से याद करो क्या इसी बात पर, 
नहीं हुआ था हम दोनों में सौदा उस दिन। 
खुशी और गम हम आधे आधे बाँटेंगे, 
जीवन व्यर्थ, मुकर जायें हम इससे जिस दिन। 

फिर तुमने क्यों केवल मेरी हँसी खरीदी, 
मेरी करुणा का क्यों मोल नहीं पहचाना। 

ओ मेरी खुशियाँ खरीद ले जाने वाले ! 
अब इस गम का मोल चुकाना, तब जानूँगा। 
ओ मेरे जीवन से असमय जाने वाले !
अब मेरे मन से भी जाना, तब जानूँगा।

(4)
जब-जब मैंने प्रेम प्रकट करने को चाहा,
तब-तब तुमने उँगली रख दी मेरे मुँह पर;
पर अब तो यह सारी बंदिश खत्म हो गयी,
आज कौन मुझको इससे रोकेगा प्रियवर।
 
चीख-चीख कर मैं इस दुनिया से कह दूँगा,
तुम मेरी थीं, तुम मेरी हो ,और रहोगी।
 
ओ अपना अनुराग रहस्य बनाने वाले !
अब जग से यह राज छुपाना, तब जानूँगा।
ओ मेरे जीवन से असमय जाने वाले !
अब मेरे मन से भी जाना तब जानूँगा।''
 

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-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी 

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