Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रिय श्रवणोत्सुक श्रोता

 
प्रिय श्रवणोत्सुक श्रोता... बल्कि पठनोत्सुक पाठक...
श्रवणोत्सुक शब्द तो तब उचित होता जब हम आमने सामने बैठ कर बात कर रहे होते। 
पर आज कल लोग इतने free हैं कहाँ जो आमने सामने बैठ कर बात कर सकें इतना वक्त ही किसके पास है...
फेसबुक और व्हाट्सप्प पर पढ़ना ज्यादा सुविधाजनक लगता है बनिस्बत सुनने के।बहुत बार तो हम सामने बैठकर भी सामने वाले की न सुनकर व्हाट्सप्प पर पढ़ रहे होते हैं।
यह विडंबना है इस युग की। 
यह कुभाग्य है इस युग का। 
आज के युग का कुटिल,अप्रिय और अवांछनीय सच.. 
खैर.. 
और चूंकि सुनने के लिए तुम उपलब्ध नहीं हो इसलिए लिखना ही उचित जान पड़ता है .

इसलिए हे मेरे पाठक! 
आज का सफर उतना लंबा तो नहीं था जितना जान पड़ रहा था..शायद इसलिए कि अकेला था.. शायद इसलिए कि कोई सुनने वाला नहीं था.. 
शायद इसलिए भी कि मैं सुनाना बहुत कुछ चाहता था.. शायद और भी हो सकते हैं पर मैं ज्यादा शायदों पर जाना नहीं चाहता क्योंकि वह जो मैं कहना चाहकर भी कह नहीं सका वह विषय शायदों से पूरा होता दिखता नहीं.. 
पर कोई करे भी तो क्या जब दिमाग में हजार बातें चल रही हों और उनमें से एक भी सुनी न जा सके सुनी क्या जब कही ही न जा सके तब उनका अस्तित्व ही क्या है? 
हम्म.. 
पर मश्अला इतने संक्षिप्त तर्क से हल होने वाला है नहीं..
इसकी संतृप्ति के लिए कुछ और , कुछ अधिक चाहिए..
फिर सवाल पैदा होता है.. 
और वह और भी बड़ा है. 
क्या अस्तित्व सिर्फ उसका ही है जो कहा जा सका या जो सुना जा सका या फिर इसके अलावा भी कुछ ऐसा है जिसे कभी कहा न जा सका.. जिसे कभी सुना न जा सका..पर वह भी exist करता था.. 

वैसे बिना कहे भी बहुत कुछ सुना जा सकता है.. 
सुना जा सकता था.. Existence तो उसका भी था.. Existence तो उसका भी है.
तुम मानो या न मानो.. 
पर पता है आज मैंने तुमसे तमाम बातें की और जो सफर उतना लंबा था नहीं जितना जान पड़ रहा था.. 
वह उतना छोटा जान पड़ने लगा जितना छोटा वह था नहीं.. 
अजीब सी बातें हैं, 
देखना.. 
जरा धीरे धीरे ही पढ़ना.. 
चक्कर आने लगे या आता महसूस हो तो ठहर जाना कुछ पल.. 
पानी - वानी पी लेना.. 
और जोर डालना अपने दिमाग पर कि वह तमाम बातें जो आज मैंने तुम्हारे साथ कीं..वह कैसी थीं? 

जो मैंने कही नहीं..पर तुमने सुनीं.. 
जो तुमने सुनी नहीं पर मैंने कहीं.. 
ध्यान से देखो
तुम्हारे आस पास कुछ मूर्त है जिसे तुम थाम सकते हो.. 
जो तुम्हें स्थिर महसूस हो रहा हो.. तो उसे थाम लो.. 
कुछ न हो तो तुम्हारा सिर तो होगा उसे जोर से पकड़ो.. छूटने न पाए.. 
हम्म सही 

अब एक बार फिर से शुरू से पढ़ना चालू करो..... 

तब तक मैं उस पोस्ट का इंतजार करता हूँ, जिसे पढ़ने के लिए तुम फिर मेरी पोस्ट पर आओगे.. बिना आहट किये.. चुपचाप.. 
शुभ रात्रि... 

परिणामोत्सुक - 
गौरव शुक्ल 
मन्योरा

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