"राजकिशोर पाण्डेय प्रहरी जी को श्रद्धांजलि "
पूज्य राज किशोर पांडे प्रहरी जी नहीं रहे।
सुबह-सुबह श्रवण के सर्वथा अयोग्य यह समाचार ह्रदय विदारक था।
90 के दशक की बात होगी पिताजी राजकीय इंटर कालेज में प्रवक्ता थे और आदरणीय प्रहरी जी गांधी विद्यालय में।
मद्य निषेध और समाजोत्थान विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा मद्य निषेध निबंध प्रतियोगिता आयोजित की गई थी मैं राजकीय इंटर कॉलेज में कक्षा ग्यारह का छात्र था। पिता जी अचानक कक्षा में आए, मुझे बुलाया और कहा
मद्य निषेध निबंध प्रतियोगिता है गांधी विद्यालय में। तुम्हें निबंध लिखना है।
मैंने कहा कब?
वे बोले अभी, तुरंत।
मैं अचकचा गया। अभी मैं क्या लिख सकूंगा?
वह बोले जो लिख सको।
राजकीय इंटर कॉलेज और गांधी विद्यालय को उस वक्त एक अत्यंत संक्षिप्त रास्ता जोड़ता था जिसमें बीच में केवल सड़क थी। 2 मिनट का रास्ता। मैं गांधी विद्यालय पहुंचा। कापियां बंट चुकी थीं। मुझे भी एक कापी मिल गई।लिखने बैठ गया। बाद में उस प्रतियोगिता में पुरस्कार और प्रमाण पत्र भी मिला जो मेरे पास आज भी धरोहर है।
परीक्षा के पश्चात पिता जी ने आदरणीय प्रहरी जी से मिलवाया और पैर छूने के लिए कहा। यह वही प्रहरी जी थे जिनके नाम को मैंने अखबार के कालम पाठकों के पत्र में कई बार पढ़ा था। अपने पत्रों में वह प्रायः जनपद की समस्याओं का जिक्र करते।उन समस्याओं के प्रति जनप्रतिनिधि और शासन प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराते हुए प्रहरी जी मुझे अपनी कल्पनाओं में किसी 'सेलिब्रिटी' जैसे लगते।उनके चरणों का स्पर्श पाकर मुझे लगा कि मैं धन्य हो गया हूं। उनके आशीष की भागीरथी में नहाकर मैं पुलकित भी हुआ और रोमांचित भी।
औसत कद काठी, गौर वर्ण, सादा पहनावा परंतु चेहरे पर आलोकित अदम्य तेज किसे आकर्षित नहीं करता था।
वह समाज के लिए जिए। उनका जीवन और उनके प्राण समाज की धरोहर थे। उनका परिवार उनके घर की चारदीवारी के भीतर तक सीमित न होकर पूरे शहर और पूरे जनपद में फैल कर विराट हो गया था। विधाता के किसी दुर्लभ वरदान सरीखा यह महामानव सभी के लिए कितना सुलभ और समर्पित था¡
शहर की छोटी मोटी गोष्ठियों से लगाकर बड़े से बड़े कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति उन्हें सर्वव्यापी बनाती थी।
उनके देहावसान की खबर सुनकर आज किसकी आंख न रोई होगी ¡ किसका मन भर नहीं आया होगा ¡ वह कवि भले ही बहुत बड़े नहीं थे पर व्यक्ति वह बहुत बड़े थे। और यह बड़े कवि होने से कहीं बहुत अधिक बड़ी बात है। कविता लिखने के लिए कलम थामने वाला, कविता लिखने का शौक पालने वाला, कौन ऐसा है जो उनके आशीर्वाद के लिए ललचाया न हो ¡
मेरे पास उनसे जुड़े हुए अनगिनत संस्मरण है और उन सभी संस्मरणों में मेरे पास लिखने के लिए अगर कुछ है तो यही है कि वह अद्भुत थे।
पूज्य पितामह के जन्मोत्सव समारोह बसंत पंचमी में वह हमारे यहां हमेशा आते रहे।पितामह में उनकी अगाध श्रद्धा और आस्था मैं हमेशा ही देखता आया।
गत वर्ष जब मैंने पिताजी की अवस्था और अस्वस्थता को लेकर, बसंत पंचमी का कार्यक्रम कैसे होगा, यह चिंता व्यक्त की तो सहज ही उनके मुंह से निकला कि गौरव भैया यह कार्यक्रम कभी बंद नहीं होगा। हम सब करेंगे। और अधिक भव्यता के साथ करेंगे तुम बिल्कुल चिंता न करो। .. मुझे क्या सभी को यह सत्साहस बंधाने वाला वह व्यक्ति आज हमारे बीच नहीं है यह जान आत्मा अत्यंत दुखी और विचलित है।
अभी कुछ ही दिन पहले फोन करके उन्होंने मुझसे कहा भैया अपनी और दादा (पिता श्री सत्यधर शुक्ल) की अवधी की दो दो कविताएं तथा चित्र मुझे दे दो। अवधी कविताओं का संग्रह निकालना है। दो दिन बाद फिर फोन आ गया, तुम आए नहीं मुझे तत्काल चाहिए। उनके आदेश को पालते हुए मैं उसी दिन सब सामग्री लेकर उनके घर पहुंचा, भैया उत्तम पांडे भी साथ में थे। उनकी बातें होती रही।
उनके निश्छल स्नेह और व्यवहार पर मैं कितना मुग्ध होऊं, इस कामना की सीमा नहीं हो सकती।
प्रहरी जी सच्चे अर्थों में समाज के प्रहरी थे। उनका उपनाम उनके नाम के साथ जुड़कर सार्थक हो गया था मानो शब्द के अर्थ ने ही शरीर धारण कर लिया हो।
अहंशून्यता और साहित्य तथा समाज सेवा की पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए प्रहरी जी आज जब हमारे बीच नहीं है तब उनके महत्व और उनकी कमी का आभास अनिर्वचनीय है।
किसी कवि की दो पंक्तियां मेरे दिल का सब कुछ हाल कह देती हैं-
'वो साथ था तो हमें उसका ध्यान ही कब था,
चला गया तो शहर ही उजाड़ लगता है।'
ईश्वर के सबसे प्रिय बनकर आप वैकुंठ में विराजें। यही कामना। साश्रु श्रद्धांजलि।
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
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