Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रुक जाना पथिक मत

 
दो कदम है दूर तुमसे लक्ष्य, रुक जाना पथिक मत !

तुम चले हो जिस तरफ को, राह वह बिल्कुल सही है ;
हर सफलता सर्वदा     संघर्ष की   भूखी        रही है ।
संगठित होकर जवानी मांगती जब स्वत्व अपना ;
इंद्र को भी छोड़ सिंहासन पड़ा करता उतरना। 

मोड़ सकते हो नदी की धार तुम में शक्ति है वह ,
आंधियों का देख रुख, संदेह मन लाना पथिक मत !

दो कदम है दूर तुमसे लक्ष्य रुक जाना पथिक मत !

गद्दियों पर लोग जो बैठे    तुम्हीं ने  हैं     बिठाये, 
शीश पर इनके मुकुट कल, थे तुम्हीं ने तो सजाए ।
किंतु सत्ता के नशे ने मति नहीं किसकी फिरा दी ?
बुद्धि पर, ऐश्वर्य ने, किसकी नहीं बिजली गिरा दी ?

हो गए निर्लज्ज हैं यह,      भूलकर इतिहास अपना ,
वक्र इनकी भृकुटियों से रंच भय खाना पथिक मत !

दो कदम है दूर तुमसे लक्ष्य रुक जाना पथिक मत!

-गौरव शुक्ल
मन्योरा

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