दो कदम है दूर तुमसे लक्ष्य, रुक जाना पथिक मत !
तुम चले हो जिस तरफ को, राह वह बिल्कुल सही है ;
हर सफलता सर्वदा संघर्ष की भूखी रही है ।
संगठित होकर जवानी मांगती जब स्वत्व अपना ;
इंद्र को भी छोड़ सिंहासन पड़ा करता उतरना।
मोड़ सकते हो नदी की धार तुम में शक्ति है वह ,
आंधियों का देख रुख, संदेह मन लाना पथिक मत !
दो कदम है दूर तुमसे लक्ष्य रुक जाना पथिक मत !
गद्दियों पर लोग जो बैठे तुम्हीं ने हैं बिठाये,
शीश पर इनके मुकुट कल, थे तुम्हीं ने तो सजाए ।
किंतु सत्ता के नशे ने मति नहीं किसकी फिरा दी ?
बुद्धि पर, ऐश्वर्य ने, किसकी नहीं बिजली गिरा दी ?
हो गए निर्लज्ज हैं यह, भूलकर इतिहास अपना ,
वक्र इनकी भृकुटियों से रंच भय खाना पथिक मत !
दो कदम है दूर तुमसे लक्ष्य रुक जाना पथिक मत!
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
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