Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सच बताना क्या तुम्हें भी है हमारी याद आती?

 

सच बताना क्या तुम्हें भी है हमारी याद आती?



सच बताना क्या तुम्हें भी है हमारी याद आती? 
(1)
मैं तुम्हारा नाम चातक सा रटा  करता निरंतर, 
 दु:ख, सुख, पीड़ा, व्यथा में याद हूँ तुमको रहा कर। 
 एक पल को भी नहीं स्मृति से हमारी, छवि तुम्हारी, 
 भूल कर के भी उतरती है कभी, हूँ सोचता पर-

 जिस तरह जपता तुम्हारे नाम की माला यहाँ मैं, 
 क्या वहाँ तुम भी हमारे इस तरह हो गीत गाती? 

सच बताना क्या तुम्हें भी है हमारी याद आती? 
(2)
प्रीति की होती परीक्षा है विरह के ही निकष पर, 
 प्रेम होता है प्रमाणित आँसुओं से ही टपक कर। 
यह रुदन, सिसकन, घुटन, तड़पन, तपन, बिलखन प्रभृति ही, 
तो बनाते प्रेम को जीवंत, सारे साथ मिलकर। 

 जागरण में, स्वप्न में, एकांत में भी, भीड़ में भी, 
ध्यान लाता मैं तुम्हें क्या हो मुझे तुम ध्यान लाती? 

 सच बताना क्या तुम्हें भी है हमारी याद आती? 
(3)
प्रेम का प्रतिदान केवल प्रेम ही होता, कहूँगा, 
याद तुमको जिस तरह से कर रहा हूँ मैं, करूँगा। 
नेह तुमसे लग चुका है, यह न छूटेगा कभी पर - 
शांति पाऊँगा अलौकिक, जिस दिवस यह जान लूँगा। 

 जिन विकल, विह्वल एवं करुणा भरे विगलित स्वरों से, 
मैं बुलाता हूँ  तुम्हें, क्या हो मुझे तुम भी बुलाती? 

 सच बताना क्या तुम्हें भी है हमारी याद आती? 
                ________________
रचनाकार - 
गौरव शुक्ल
मन्योरा 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ