शहीद हनुमंथप्पा को विनम्र श्रद्धांजलि।
पहली बार महसूस हुआ कि मृत्यु कितनी कठोर है, कितनी कठिन, कितनी दारुणऔर कितनी भयानक!!
पहली बार नियति के समक्ष पराक्रम को परास्त होते देखा!!!
पहली बार देखा कि जिंदगी और मौत के बीच की जंग कितनी लंबी हो सकती है !!!! लांसनायक हनुमंथप्पा !!तुम्हारे साहस और शौर्य को प्रणाम !!
तुम्हारे इस महाप्रस्थान पर सम्पूर्ण मानवता दुखमग्न है।करुणा और शोक में महालीन।।
कुछ विस्मित कुछ हतप्रभ।
तुम्हारी मृत्यु की इस विराट यात्रा का वर्णन कर सके ऐसी सामर्थ्य शब्दों में अभी तक नहीं जुट सकी।
तुम्हारी जिजीविषा को हमारी दरिद्रता का साश्रु नमन।
हमने विज्ञान को कमाया है परन्तु उस सीमा तक नहीं,जहाँ तक तुम्हें जरूरत थी।
मेरे प्रणम्य वीर !!!तुम्हारे बलिदान ने मनुष्यता को सैकड़ों प्रश्न सौंपे हैं और उसमें एक प्रश्न यह भी है कि आखिर कब मनुष्य, मनुष्य कहलाने योग्य शिष्टाचार का अर्जन कर सकेगा??
वह सभ्यता कब जन्म लेगी जिसमें हमें हमारे अधिकारों की रक्षा के लिये बर्फ की अनंत शीतल शिलाओं पर खड़े होकर बंदूक न ताननी पड़े???
वह बोध कब उत्पन्न होगा जिसकी परिधि में सम्पूर्ण वसुधा एक कुटुम्ब होकर रह सकेगी???
जाओ मित्र जाओ!!!स्वर्ग तुम्हारे स्वागत को आतुर है!!! उसका आतिथ्य तुम्हें मुबारक हो!!!!
हम पृथ्वीवासी अभी भी असभ्य हैं। अशिष्ट हैं। जाहिल और महामूर्ख हैं। हमारी मूढ़ता को धिक्कार है।। हमारी शिक्षा पर लानत है।।
हम कल से फिर एक दूसरे पर हथगोले दागने की तैयारी में लीन होंगे।।
हमारी पीढ़ियाँ ऐसे रक्तरंजित इतिहासों को अभी न जाने कितनी बार दुहरायेंगी।
फिर भी हमारे अनमोल रत्न !!हमारे संस्कारों की उन्नति की कामना करते रहना!!!
क्या मालूम हमें आपकी शहादत से प्यार से जीने का सलीका आ सके।।।
हमारे वरेण्य साहसी!!! हमारे चिंतन को विवश करने का यत्न करना।।
हम हैं आपके हतभागी
समस्त धरतीवासी।
हो सके तो हमें क्षमा करना!!!!!!!""
श्रद्धांजलि!!!
लखीमपुर खीरी
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