तूफान उठा यह बीच राह में ही कैसा
तूफान उठा यह बीच राह में ही कैसा,
घनघोर अँधेरा छाया आँखों के आगे।
दे रहा दिखाई नहीं हाथ है अपना भी,
मंजिल तलाश पाने की बातें कौन करे?
बुझ गए राह के सारे दीपक एक साथ,
अब राह जगमगाने की बातें कौन करे?
है आगे कुआँ और पीछे खाईं गहरी,
गिरना ही गिरना है, तय है नसीब अब तो।
हैं एक एक कर साथ छोड़ सब चले गए,
आता दीखता नहीं कोई करीब अब तो।
जीवन की अंतिम आशा भी दम तोड़ गई,
अब हाल-चाल पूछेगा, कौन, बताएगा?
कसमों वादों की लंबी फेहरिस्त लेकर,
अब साथ निभाने कौन यहाँ तक आएगा?
सच है पैदा ही जब हम हुये अकेले थे,
जाना भी होगा निस्संदेह अकेले ही।
यह मृत्युलोक का साथ यहीं तक सीमित है,
रिश्ते नाते सारे हैं मात्र झमेले ही।
कोई आकर्षण मुझे यहाँ का बाँधे क्यों?
माया का कोई जाल मुझे क्यों ठहराए?
अंबर में नूतन पंथ खोजने जाता हूँ,
कोई वासना कदम मत मेरे ठिठकाये।
मेरे प्रति जिसके मन में जो उद्गार उठें,
अच्छे या बुरे, उन्हें दिल से निकाल देना।
है राम नाम ही सत्य यहाँ कुछ और नहीं,
इसलिए भूलकर भी न नाम मेरा लेना।
मेरी यादों को व्यर्थ गले लटकाना मत
अपनों से भी, गैरों से भी, विनती मेरी।
कुछ पाप भोगने आया था, भोगे ;सुख-दुख -
देने-लेने में मत करना गिनती मेरी।
मेरा कुछ नहीं कहो किस पर अभिमान करूँ,
किस पर अधिकार जताऊँ, किस से घृणा करूँ।
चलने को प्रस्तुत हूँ यमदेव न देर करो,
अब जीर्ण वस्त्र यह अपने शीघ्र उतार धरूँ।
मेरी अंतिम इच्छा, भू पर सौहार्द्र बढ़े,
मानव मानव को नोच नोच कर खाए मत।
जैसे निराश जाता हूँ मैं इस धरती से,
ऐसे निराश होकर कोई भी जाए मत।
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गौरव शुक्ल
मन्योरा
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