तुम आईं मेरे जीवन में
तुम आईं मेरे जीवन में, मुझको जीने का ढँग आया।
(1)
जब जीवन से होकर निराश,
बैठा था एकाकी, उदास।
खुशियों का नाम निशान न था,
किस पथ जाऊँ, अनुमान न था।
तब तुमने मुझे सहारा दे,
निज प्यार अलौकिक प्यारा दे ;
कर दिया धन्य मेरा जीवन,
तुझ पर न्योछावर यह तन मन।
हर कमी हुई पूरी उस दिन, जिस दिन से तुमने अपनाया।
तुम आईं मेरे जीवन में, मुझको जीने का ढँग आया।
(2)
मन कहता मुझसे बार-बार,
आरती तुम्हारी लूँ उतार।
फूलों से तेरी माँग भरूँ,
तेरा निष्कंटक पंथ करूँ।
हर विधि से तेरा अभिनंदन!
मेरे साथी सौ बार नमन!
तेरा सत्कार अपार प्रिये!
तुम बिन दुनिया निस्सार प्रिये।
क्या कहूँ अधिक बस यूँ समझो, तुम को पाया तो सब पाया।
तुम आईं मेरे जीवन में, मुझको जीने का ढँग आया।
(3)
मेरे सपनों के मूर्त रुप!
तेरी आभा अद्भुत अनूप!
मेरे सुख की भविष्यवाणी!
क्या सौंपूँ तुझको कल्याणी।
मेरी अभिलाषा के निकुंज!
तुम अद्वितीय, तुम तेज-पुंज!
मेरी हर पीड़ा के निदान!
प्रत्येक प्रश्न के समाधान!
शब्दों में क्या गाऊँ उसको, जिसको प्राणों ने हो गाया।
तुम आईं मेरे जीवन में, मुझको जीने का ढँग आया।
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गौरव शुक्ल
मन्योरा
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