Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

तुम अक्सर कहती हो

 

तुम अक्सर कहती हो मुझसे,पूरी दुनिया घूम देख लो,
तुम पर प्यार लुटाने वाली, मेरे जैसी नहीं मिलेगी।
(1)
तुम कवि हो,तुम गीतकार हो,बहुत प्रशंसक मिल जाएंगे,
पढ़कर गीत तुम्हारे सुमधुर, दाद बहुत देने आएंगे।
तुम्हें चाहने वालों का दुनिया में नहीं अकाल पड़ेगा;
तुम जाओगे जहां वहां तुम को यथेष्ट सम्मान मिलेगा। 

किंतु चाहने वाली मुझ-सी,
राह ताकने वाली मुझ-सी,
तुम पर बलि-बलि जाने वाली, मेरे जैसी नहीं मिलेगी।
तुम अक्सर कहती हो मुझसे,पूरी दुनिया घूम देख लो,
तुम पर प्यार लुटाने वाली, मेरे जैसी नहीं मिलेगी।
(2)
तुम अक्सर कहती हो मुझसे, तुम शब्दों के जादूगर हो;
तुम तमाम अनगाये लोगों के भावों को देते स्वर हो।
तुम उनका उद्गार न अपने मन की गांठ खोल पाए जो;
सहा बहुत कुछ, किंतु जगत के सम्मुख नहीं बोल पाए जो;
वह सब तुम्हें सहारा देंगे,
मान तुम्हारा सदा रखेंगे,
पर सिर पर बिठलाने वाली, मेरे जैसी नहीं मिलेगी।
तुम अक्सर कहती हो मुझसे,पूरी दुनिया घूम देख लो,
तुम पर प्यार लुटाने वाली, मेरे जैसी नहीं मिलेगी।
(3)
मैं भी मन भर कर कहता हूं, तुम वाकई सत्य कहती हो;
पूरी दुनिया में तुम मुझको सबसे अलग खड़ी दिखती हो।
विधि ने तुम्हें बनाया सबसे अद्भुत कला जुटा कर सारी;
एकमात्र कृति हो तुम उसकी, सबसे सुंदर, सब पर भारी;
जग में कहां ढूंढने जाऊं,
बनी नहीं फिर कैसे पाऊं,
ढूंढ़ूं भी तो इस धरती पर, तेरे जैसी नहीं मिलेगी।
तुम अक्सर कहती हो मुझसे,पूरी दुनिया घूम देख लो,
तुम पर प्यार लुटाने वाली, मेरे जैसी नहीं मिलेगी।
- - - - - - - - - - - - -
-गौरव शुक्ल
मन्योरा 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ