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तुम हुए नहीं क्यों वीतराग?

 

गौरव शुक्ल मन्योरा 

3:35 AM (2 hours ago)





तुम हुए नहीं क्यों वीतराग?
क्यों तुमने कलियों के  अधरों से मुस्कानें चुननी चाही?
लोभातुर हो किसलिए शाटिका खुशियों की बुननी चाही?
चांदनी चुरानी क्यों चाही? मधु की लिप्सा में भटके क्यों?
सारी दुनिया कर एक तरफ तुम दो नयनों में अटके क्यों?

छूटेंगे नहीं मृत्यु पर भी तेरे दामन पर लगे दाग।
तुम हुए नहीं क्यों वीतराग?

सौदर्य   निमंत्रण  देता है,  देने  देते, स्वीकारा     क्यों ?
मचला करता है हृदय, मचलने  देते,उसको हारा क्यों?
तुम दसों इंद्रियों पर अपनी कर पाए नहीं नियंत्रण क्यों?
तृष्णा ने क्यों बावला किया? छू गया तुम्हें आकर्षण क्यों?

जग पूछ रहा , इच्छाओं का क्यों नहीं कर सके परित्याग ?
तुम हुए नहीं क्यों वीतराग?

अंधा कर दिया मोह ने क्यों ? क्यों काम नचाता रहा तुम्हें?
माया का यह परिवार कहो किसलिए भ्रमाता रहा तुम्हें?
तुम दुनिया के अपराधी हो, तुम गौतम बुद्ध न बन पाए;
तुम दोषी हो तुमने जग में, आकर श्रृंगार गीत गाए।

तुम नहीं क्षमा के योग्य, चुना क्यों तुमने फूलों से पराग?
तुम हुए नहीं क्यों वीतराग?

-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर-खीरी

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