Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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याद मैं ही क्यों करूं सब.... भाग - 5

 

याद मैं ही क्यों करूं सब.... भाग - 5



इसलिए लिख दे रहा हूं ताकि आकर साथ मेरे,
आज इस घातक जहर का स्वाद तुम भी तो चखो कुछ ।
याद में ही क्यों करूं सब ,याद तुम भी तो करो कुछ।।
यहां तक आप पढ़ चुके हैं अब आगे.....

आज करवा चौथ है फिर ,
पत्नियां फिर आज,पति की आयु लंबी हो सके, 
इस हेतु व्रत धारण करेंगी ।

मृत्यु पर फिर से विजय की कामना का यत्न होगा, 
नारियों के धैर्य का संसार फिर साक्षी बनेगा।
नारियों के आज फिर सामर्थ्य की होगी परीक्षा, 
0नारियों की शक्ति का उत्सव चतुर्दिक फिर सजेगा।

आज वनिताएं प्रमाणित फिर करेंगी श्रेष्ठता निज,
प्रेम के संबंध में हैं वह बहुत आगे पुरुष से।
आज फिर यह सिद्ध होगा ।

आज फिर यह सिद्ध होगा नारियां अबला नहीं हैं, 
जीत सकतीं प्राण पति के निर्दयी यमराज से वह।
त्याग तप का उत्स हैं वह,स्रोत हैं करुणा क्षमा के ,
हैं मनोबल के विषय में उच्चतर हिमराज से वह।

और करवा चौथ इस सब का सटीक उदाहरण है ।
और यह व्रत था रखा तुमने कभी मेरे लिए ,
क्या पता वह आज तुम को याद हो ,ना याद हो।
इसलिए लिख दे रहा हूं ।

एक दिन निज भूख पर,निज प्यास पर करके नियंत्रण 
कामना दीर्घायु होने की हमारे हेतु की थी।
वह दिवस मुझको अभी भी याद है तो याद है ।।

कल रहा था सोच मैं क्यों मांगने के बाद भी,
आती नहीं है मौत मुझको।
क्या वजह है जो कि मेरे चाह कर भी प्राण,
तन से हैं निकल पाते नहीं।

कौन चुंबक, जो कि मेरे प्राण को साधे हुए है,
कौन आशीर्वाद मुझको है न मरने दे रहा?
किस तपोबल ने मुझे इस लोक में है बांध रक्खा,
पुण्य है किस साधना का रोक मुझको ले रहा?

सोचता हूं और फिर उत्तर स्वयं ही प्राप्त होता।

निर्जला रहकर दिवस भर,
चंद्रमा की राह तक कर,
ध्यान में रखकर मुझे जो व्रत कठिन धारण किया था,
और कर पूजा प्रतिष्ठा,
पांव छू कर के हमारे,
हाथ से मेरे ग्रहण कर अन्न,पारायण किया था।

यह उसी का प्रतिफलन है।

यह उसी श्रद्धा समर्पण भाव का प्रकटीकरण है,
जो कि मेरे प्राण की करता सुरक्षा हर कदम पर।
यह तुम्हारे एक दिन के कठिन तप की चरम परिणति,
नाचती है काल के भी शीश पर निर्भीक चढ़कर।

जानता हूं काल मेरा, है तुम्हारी साधना का दास; 
जानता हूं वह सहजता से बनाएगा न मुझको ग्रास;
इससे क्षुब्ध हूं मैं ।

धर्म अपना मान उस दिन कार्य जो तुमने किया था,
आज मेरा शत्रु बन वह राह में मेरी अड़ा है।
त्याग तप का उस दिवस तुमने महा मंडप रचा जो, 
आज अत्याचार मुझ पर कर रहा दारुण बड़ा है।

कल रहा था सोच मैं क्यों मांगने के बाद भी,
आती नहीं है मौत मुझको।
क्या वजह है जो कि मेरे चाह कर भी प्राण,
तन से हैं निकल पाते नहीं।

आज उत्तर पा रहा हूं ।

उस दिवस जो था किया उपकार तुमने
आज वह अपकार मुझ पर।
उस दिवस था जो अमृत तुमने पिलाया 
आज दुखदाई हुआ है ।
पास मेरे मृत्यु डरती सी खड़ी है ,सहमती सी,
चाहता हूं दो कदम बढ़ कर उसे मैं भेंट लूं।

किंतु जब मैं दो कदम अपने बढ़ाता उस तरफ हूं,
कांप कर वह दो कदम पीछे चली है और जाती।
खेल मुझ में और मेरी मृत्यु में यह चल रहा है,
दीखती तो है मुझे पर है न मेरे पास आती।

क्या करूं मैं क्रोध अपना किस तरह तुम पर निकालूं,
किस तरह कैसे करूं आह्वान अपनी मृत्यु का।
आज तुम तक दृष्टि भी तो है पहुंच सकती न मेरी,
देखता हूं नित्य ही अपमान अपनी मृत्यु का।

एक विनती कर रहा हूं,

कर दिया था एक दिन जिस भांति तुमने मुक्त मुझको,
उस तरह ही आज मेरी मृत्यु को भी मुक्त कर दो।
तोड़ दो वह डोर जिससे बांधकर रक्खा उसे है,
फेर उसकी पीठ पर निज हाथ, उसकी भीति हर लो।

कर रहा यमराज से अनुनय विनय हूं, जिस तरह हो,
इस घुटन पीड़ा भरे संसार से मुझको उठा ले।
आज अपनी मृत्यु के आगे खड़ा हूं,हाथ दोनों बांध, 
मुझको ग्रास वह अपना बना ले।

 मोह जीवन के समूचे तोड़ पहुंचा हूं यहां तक,
कर कृपा वरदान यह अपनी अमरता का फिरा लो।
 मृत्यु आएगी न मुझ तक सरलता से, इसलिए तुम,
प्रेम का अवशेष यह स्तंभ अंतिम भी ढहा दो।

इस अनिर्वचनीय दुखदायी जगत से मुक्ति पाऊं,
आज आ इस मुक्तिकामी यज्ञ में सहयोग दो कुछ।

याद मैं ही क्यों करूं सब,याद तुम भी तो करो कुछ.................

-गौरव शुक्ल
मन्योरा 

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