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Dr. Srimati Tara Singh
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यह उदासी

 
" यह उदासी ''

यह उदासी जान के ही साथ जायेगी।

दूर तक अपना नजर कोई नहीं आता,
टूटकर बिखरा जगत के साथ हर नाता।
स्वप्न कोई पालने को अब नहीं बाकी, 
अब न मयखाना रहा वह, अब न वह साकी। 

राह कोई अब नजर आती, न आएगी ;
यह उदासी जान के ही साथ जायेगी।

है अंधेरा मात्र आगे ही न, पीछे भी:
आसमाँ ऊपर नदारद, भूमि नीचे भी।
प्राण लटके हैं हवा में किस तरह जाने,
एक भी तो है न जो अपना मुझे माने।

रूह कब तक देह में इस छटपटाएगी?
यह उदासी जान के ही साथ जायेगी।

मुश्किलों ने इस कदर कुछ तोड़ डाला है, 
हलक से नीचे नहीं जाता निवाला है। 
बात करने का किसी से मन नहीं होता, 
आइना भी देख मुझको जोर से रोता। 

और यह तस्वीर कितना रँग गँवाएगी। 
यह उदासी जान के ही साथ जायेगी।

-गौरव शुक्ल
मन्योरा 


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