'' आती हो ज्यों तुम ही''
(१)
"आती हो ज्यों तुम ही सूने पंथ को मैं इस भाव से ताकता हूँ।
तेरी प्रवंचक याद सहारे ही जीवन के दिन काटता हूँ।
तेरे वियोग से कातर मैं बस वेदना ही पहचानता हूँ।
माँगता हूँ तुमको ही सदा जब ईश्वर से कुछ माँगता हूँ।
(२)
बाँध तुम्हें भुज-पाश में मैं दुनिया को बिसारना चाहता हूँ।
तेरे सु-रूप का सिंधु दृगों से हृदै में उतारना चाहता हूँ।
मैं तुमको अपनी कुल शक्ति से आज पुकारना चाहता हूँ।
मीत तुम्हें इन लोचनों से दिन रात पुकारना चाहता हूँ।
(३)
चाहता हूँ तेरी माँग में आज मैं प्रीति का पावन रंग भरूँ।
तेरा विलक्षण रूप विलोक निरर्थक जीवन धन्य करूँ।
थाम के हाथ तेरा, अपना ही न, तेरा भी दु:ख समस्त हरूँ।
साथ रहूँ दिन रात तेरे, तेरे संग जिऊँ, तेरे संग मरूँ।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
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