Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चरैवेति चरैवेति

 
"चरैवेति चरैवेति"

जिंदगी छोटी बहुत है इसलिये,
मत रुको, चलते रहो, चलते रहो।
(१)
राह में काँटे बिछे हैं, क्या हुआ ?
तुम कुसुम की कामना जीते चलो।
कोष खुलने को सुधा का आ गया,
शेष दो विष घूँट भी ,पीते चलो।

दीखती वह जो क्षितिज के तीर पर
बस वही मंजिल तुम्हारी है, अहो !
है प्रतीक्षा में खड़ा गंतव्य भी,
स्वागतम् के हेतु तुम तत्पर रहो।

स्वप्न कोई चू न जाये आँख से,
हो सजग,बढ़ते रहो, बढ़ते रहो।

जिंदगी छोटी बहुत है इसलिये,
मत रुको, चलते रहो,चलते रहो।
(२)
शक्तियाँ, निस्सीम हैं तुममें भरी,
मात्र आवश्यक ,उन्हें तुम जान लो।
तुम अपरिमित योग्यता से युक्त हो,
भेद यह अद्भुत स्वयं पहचान लो।

ठान लो तो क्या असंभव है भला,
जो न कदमों में तुम्हारे आ पड़े।
एक भी बाधा नहीं ऐसी बनी,
जो तुम्हारे पंथ में आकर अड़े।

बाँधकर पाथेय,हो कटिबद्ध तुम,
निष्पलक, जगते रहो,जगते रहो।

जिंदगी छोटी बहुत है, इसलिये,
मत रुको, चलते रहो,चलते रहो।
(३)
कर्म कितने ही, अधूरे हैं पड़े,
चल पड़ो अविलंब, रुक जाना नहीं।
लक्ष्य कितना भी कठिन हो,मित्रवर !
प्राप्त कर पाये बिना, आना नहीं।

श्राप है आलस्य, थकना पाप है;
धर्मच्युत होगे, किया विश्राम यदि।
पूर्वजों को क्या कहोगे, सोच लो,
कर्म से ही हो गये उपराम यदि।

इसलिये पौरुष भरा अध्याय तुम,
नित्य नव,लिखते रहो, लिखते रहो।

जिंदगी छोटी बहुत है इसलिये,
मत रुको, चलते रहो , चलते रहो।''
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा 

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