Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हम, हैं एक प्राण लेकिन

 
दो देह भले हों हम, हैं एक प्राण लेकिन। 
तुम बिन जीवन जीना, है अब तो महा कठिन। 
(1)
तू मेरी अपनी है, 
मैं तेरा अपना हूँ। 
तू मेरा सपना है, 
मैं तेरा सपना हूँ। 

हम तुम ऐसे जैसे, हों सरिता और पुलिन। 
(2)
लज्जा की दीवारें, 
संकोचों के बंधन। 
रस्मों की हथकड़ियाँ, 
नियमों के अवगुंठन। 

सब छोड़ मिले हम तुम, प्रतिक्षण, प्रतिपल, प्रतिदिन। 
(3)
तू रहे सदा हँसती, 
दुख मिले न जीवन में। 
खुशियाँ बरसें निशिदिन, 
तेरे घर - आँगन में। 

यह आलोकित आनन, होने पाए न मलिन। 
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गौरव शुक्ल 
मन्योरा

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