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Dr. Srimati Tara Singh
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जब जब तुम करते हो मुझसे

 

जब जब तुम करते हो मुझसे 


जब जब तुम करते हो मुझसे बात बिछड़ जाने की अपने,
प्राण निकल जाते हैं केवल साँसें अटकी रह जाती हैं।
(1)
मेरा और तुम्हारा मिलना है दुर्लभ संयोग सरीखा,
जोड़,घटाना,गुणा,भाग कुल प्रीति प्रेम का तुमसे सीखा।
तुम इतनी आवश्यक हो जाओगी मेरे लिए अचानक,
जीवन की कल्पना तुम्हारे बिन होगी यूँ घोर भयानक;

सोच-सोचकर रूह काँपने लगती है अश्वत्थ-पत्र सी,
आँखों से गंगा यमुना की जल धाराएँ बह जाती हैं।
जब जब तुम करते हो मुझसे बात बिछड़ जाने की अपने,
प्राण निकल जाते हैं केवल साँसें अटकी रह जाती हैं।
(2)
तुमसे दो बातें करने का चाहा समय मात्र पल दो पल,
जाने अनजाने इतना अपराध किया है मैंने केवल।
कोई शर्त थोपनी चाही मैंने कहाँ तुम्हारे ऊपर,
कब जिद की तुम मेरा साथ निभाओ अपनी दुनिया तजकर। 

बंधन कौन लादना चाहा ऐसा जो तुम पर भारी हो,
दुख होता है जब यह तुच्छ भावनाएँ भी ढह जाती हैंं।
जब जब तुम करते हो मुझसे बात बिछड़ जाने की अपने,
प्राण निकल जाते हैं केवल साँसें अटकी रह जाती हैं।
(3)
बहुत-बहुत कच्चे धागे से बुना गया है रिश्ता अपना,
उजड़ी आशाओं ने देखा है उचटी नींदों में सपना।
क्षीण धरातल पर नभचुंबी किला बनाना चाहा मैंने,
सदियों से सूखे तड़ाग में कमल खिलाना चाहा मैंने। 

मरी पड़ी है जिज्ञासाएँ, कैसे प्रश्न, कहाँ के उत्तर,
मेरी नादानी की करुण कथाएँ सब कुछ कह जाती हैं।
जब जब तुम करते हो मुझसे बात बिछड़ जाने की अपने,
प्राण निकल जाते हैं केवल साँसें अटकी रह जाती हैं।
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
मोबाइल-7398925402


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