KBC में 'कदम कदम बढ़ाये जा' के रचयिता का नाम पूछे जाने पर
कल 'कौन बनेगा करोड़पति' का यह प्रश्न
'कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा' गीत के रचयिता का नाम क्या है?
हम लोगों के लिए अपार खुशियाँ लेकर आया ।
इस खुशी का कारण आप सभी के साथ साझा करना चाहता हूं। वस्तुतः बाबा जी के इस गीत के साथ हमारी कुछ दुखद यादें भी जुड़ी हैं ।
एक लंबे अरसे (90 के दशक) तक अधिकांश लोग इस गीत के रचनाकार का नाम नहीं जानते थे ।कुछ तो इसके रचयिता होने का दावा भी करते थे ।वह अखबारों को इंटरव्यू देते हुए कहते कि यह गीत मेरा लिखा है , अखबार में उनका नाम छपता ।
हम देखकर हैरान और परेशान होते। मन ही मन घुटते ।कुंठा का अनुभव करते ।उनके संपर्क सूत्र खोजते । फिर उन्हें पत्र लिखकर पूछते ' आप यह झूठ क्यों बोल रहे हैं यह गीत तो हमारे पितामह का है और एक नहीं ऐसे तमाम गीत उन्होंने अपने जीवन में लिखे हैं।आप कवि हैं तो आपने और भी कुछ लिखा होगा। उसे भी प्रकाश में लाइए।'
पर कोई जवाब न आता। हम बड़ा असहाय और असहज अनुभव करते। पिताजी के चेहरे पर कभी चिंता, कभी क्रोध और कभी तनाव के मिले-जुले भाव उभरते देख पूरे घर का माहौल ही बदल जाता।
हम लोगों को बताते, यह गीत बाबा जी का लिखा हुआ है पर कोई अखबार छापने को तैयार न होता अधिकांश लोग तो हमारे कथन और मंशा को ही शंका की दृष्टि से देखते। उन्हें लगता कि हम अपने पितामह का यश बढ़ा चढ़ाकर बयान कर रहे हैं।
उनके भाव समझकर बड़े संकोच का अनुभव होता।
परंतु हमारे पिताजी ने हार नहीं मानी। वह कहते रहे। संघर्ष करते रहे, क्योंकि उनके 'बाबू' (पिता जी बाबा जी को बाबू कह कर ही संबोधित करते हैं) कह जो गए थे -
'बड़ी लड़ाइयां हैं तो बड़ा कदम बढ़ाए जा।'
उनका कदम बढ़ता रहा।
उनकी अटूट लगन, अडिग संकल्प, अपराजेय आस्था और अथक श्रम का नतीजा इस रुप में पाकर हम गद्गद् हैं।
गौरवान्वित हैं।
हमारी आंखें खुशी के आंसुओं से भीगी हैं।
'अबिगत गति कछु कहत न आवै' - कुछ कहते नहीं बनता।
पूज्य पिताजी!! सबसे पहले तो आपको बधाई हो, क्योंकि जिस बात को आप आज तक दृढ़ता के साथ कहते रहे, उसे आज भारत वर्ष का महान सेलिब्रिटी, सदी का महानायक, प्रमाणित कर रहा है।
जिन गीतों को पढ़कर-' मेरे बाबू के अलावा ऐसा कौन लिखेगा' कहते हुए, आप जिस श्रद्धा और सम्मान से सिर झुकाते रहे, ठीक उसी श्रद्धा और सम्मान के साथ करोड़ों करोड़ देशवासी झुका रहे हैं।
अर्ध शताब्दी तक हिंदी साहित्य के आकाश को अपनी अकलंक, निर्दोष और अप्रतिहत आभा से दीप्तिमान करने वाले आपके
' बाबू' की ज्योति उनके देहावसान के 38 वर्षों के पश्चात भी अभी तक यदि मद्धिम नहीं हुई है तो इसके सबसे बड़े हकदार आप और आपके बाल सखा, हमारे ताऊ, प्रसिद्ध एडवोकेट, परम आदरणीय श्री राजकुमार त्रिवेदी है। आप दोनों के चरणों में मेरा विनम्र प्रणाम।
आप दोनों लोग शतायु हों, ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ।
इसके अतिरिक्त बाबाजी की कविताओं में, उनके व्यक्तित्व में उनकी शैली में, जिस जिस को भी आस्था और रूचि है उन सभी को प्रणाम करता हूं।
सोशल मीडिया पर जो भी उन्हें यथासमय, यथावसर कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करते हैं, सभी को मेरा कोटि-कोटि नमन वंदन और अभिनंदन।
जनकवि, राष्ट्रकवि, अवधी सम्राट, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित बंशीधर शुक्ल की कविता हमारी प्रेरणा, ऊर्जा और शक्ति का संवाहक बने इसी कामना के साथ विनयावनत-
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
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