कौन यह मेरे दुखों पर
"कौन यह मेरे दुखों पर इस तरह मुसका रहा है?
(१)
यह वही शायद कि जिसने एक दिन मेरे करों में,
सौंप अपना कर, मिलाता स्वर रहा मेरे स्वरों में।
विश्व का मेरे दृगों में खोजता अवलंब था जो,
चिह्न पर मेरे चरण के पद सदा धरता रहा जो।
दूसरे की क्या भुजाओं में वही बल खा रहा है?
कौन यह मेरे दुखों पर इस तरह मुसका रहा है?
(२)
स्नेह वह निस्सीम पल में,चुक गया,विस्मित बहुत हूँ,
जर्जरित विश्वास-नौका देख कर चिंतित बहुत हूँ।
अग्नि में आहुति सदृश कैसे समर्पण जल गया वह?
हाय निर्मम ढंग जिससे कर मुझे घायल गया वह;
ढँग बदल वह रूप अपना, अन्य को अपना रहा है।
कौन यह मेरे दुखों पर इस तरह मुसका रहा है?
(३)
यह वही जिसके कि सुख दुख में हमेशा साथ था मैं,
छोड़ता हर एक संकट में न जिसका हाथ था मैं,
व्रण असंख्यों देह पर मेरी,उसी की हैं निशानी,
खिलखिलाहट दूर से उसकी नयी कहती कहानी।
तज मुझे मँझधार में निज भाग्य पर इठला रहा है,
कौन यह मेरे दुखों पर इस तरह मुसका रहा है?
- गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
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