Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरी किस्मत में तुम नहीं हो मानता हूँ मैं

 

मेरी किस्मत में तुम नहीं हो मानता हूँ मैं,


मेरी किस्मत में तुम नहीं हो मानता हूँ मैं, 
अपने हालात, अपनी हद को जानता हूँ मैं। 

तेरे आँसू को पोंछने का हक नहीं है मुझे, 
तू रोए भी तो देखने का हक नहीं है मुझे। 

तेरे दुखों को,आगे बढ़,बँटा नहीं सकता, 
तेरे गमों के बोझ को घटा नहीं सकता। 

अपनी मजबूरियों को किस तरह बयान करुँ, 
अपनी लाचारगी ले जा के कौन ओट धरूँ।
 
ये सोच-सोच मन ही मन में घुटता रहता हूँ, 
हाथ होते हुए अपाहिजों सा लगता हूँ। 

चाहता हूँ तेरे हर दुःख सुख में साथ रहूँ,
तेरी हर बात सुनूँ, तुझसे हर इक बात कहूँ। 

 हर घड़ी तेरे साथ रहना चाहता हूँ मगर, 
 हर डगर साथ तेरे चलना चाहता हूँ मगर; 

तुझसे ज्यादा, तेरी बेइज्जती से डरता हूँ,
ये किस तरह का प्यार तेरे साथ करता हूँ। 

 मेरी तमाम हसरतों का ओर छोर नहीं, 
 खुद पे है किंतु, तमन्ना पे कोई जोर नहीं।

मुझ से इंकार कर रही हैं मान जाने से,
उनकी जिद है कि तुझे छीन लूँ जमाने से। 

तेरे दामन में सारे चाँद सितारे भर दूँ,
जिंदगी अपनी तेरे नाम समूची कर दूँ। 

दूरी इक पल की भी तुझसे न सही जाती है, 
तू गैर है मगर अपनी सी नजर आती है। 

प्यार तेरा मेरी सबसे बड़ी अमानत है, 
तू मेरा धन, मेरा सपना, मेरी इबादत है। 

चाहता हूँ, तुझे मेरी उमर भी लग जाए, 
 तेरे चारों तरफ खुशी खड़ी नजर आए। 

तेरी खुशी का रथ दुनिया में कहीं अटके ना, 
दुख तेरी जिंदगी के आसपास फटके ना।

-गौरव शुक्ल
मन्योरा 
लखीमपुर खीरी

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